Book Title: Vitrag Vinti
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ सं. रसीला कडीआ प्रस्तुत कृति ला. द. विद्यामन्दिर, अमदावादना ग्रन्थालयनां त्रूटक पुस्तकोमाथी उपलब्ध थई छे. आ कृति एक ज पत्रमां लखायेली छे. स्थिति श्रेष्ठ छे. भाषा प्राकृत छे. कुल गाथा १९ छे. आ पत्रनी पाछळ आदिनाथविनति नामक अन्य पण एक कृति छे. आ कृतिना अक्षरो पाछला पृष्ठनी कृति करतां सहेज मोटा छे. पत्रमां कुल १५ पंक्तिओ छे. दरेक पंक्तिमां आशरे ५० शब्दो छे बन्ने हांसियामां लाल चन्द्रक छे. बच्चे छिद्र वपरायुं नथी. तेनी आजु-बाजु अक्षर पूर्या विनानी चोरस आकृति छे अंक पर गेरु भूस्यो छे. कृतिमां रचनासंवत् के कर्तानुं नाम आपेल नथी. प्रतिनो लेखन समय अनुमाने १५ मा सैकानो होय तेम जणाय छे. अज्ञातकर्तृक वीतराग - विनति आ विनंतिमां एक भक्तकवि अनन्तकाळना भवभ्रमणथी पीडायेला हृदयनी व्यथाने प्रभु समक्ष भक्तिपूर्ण शब्दोमां रजू करे छे. थोडां उदाहरणो जोईए : " हे त्रण लोकना पितामह ! बालक जेम पोताना माता-पिता समक्ष काली घेली भाषामां गमे ते बोले, तेओने आनंद ज थाय छे, उद्वेग नथी थतो ! तेम हुं पण आपने विनंति करु धुं तो आप मारा पर कृपा राखशो. वळी कहे छे, भवसमुद्रमां डूबेला मने अनन्तकाले तमे मळ्या छो छतां मारो उद्धार केम नथी थतो ? शुं में तमने प्रभु तरीके स्वीकार्या नथी ? आ भयंकर एवा भवरूपी अरण्यमां, हरणना जूथमांथी छूटा पडी गयेला हरणियानी जेम मने, करुणारसथी पूर्ण एवा पण आपे शा माटे एकलो मूकी दीधो ? ए सत्य छे के आप वीतराग निरीह सकल व्यापारोधी मुक्त छो, छतां अति दुःखित एवा एकला मने ज आप निर्वृत (मुक्त) करी दो ! शुं ए कर्मोनो दोष छे ? के काळनो अनुभाव छे ? अथवा दुष्ट एवा मारी ज अयोग्यता छे ? जे आप समर्थ - दयालु अने त्रिभुवनना - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4