Book Title: Vishwadharm ke Rup me Jain Dharm Darshan ki Prasangikta Author(s): Mahaveer Saran Jain Publisher: Z_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf View full book textPage 2
________________ मार्क्स ने धर्म की अवहेलना की है । वास्तव में मार्क्स ने मुसीबतों का कारण हमने अपने विगत जीवन के कर्मों को मान मध्ययुगीन धर्म के बाह्य आडम्बरों का विरोध किया है । जिस लिया । वर्तमान जीवन में अपने श्रेष्ठ आचरण द्वारा अपनी समय मार्क्स ने धर्म के बारे में चिन्तन किया उस समय उसके मुसीबतों को कम करने की तरफ हमारा ध्यान कम रहा । ईश्वर चारों ओर धर्म का पाखंडभरा रूप था । मार्क्स ने इसी को धर्म का और मनुष्य के बीच के बिचोलियों ने मनुष्य को सारी मुसीबतों, पर्याय मान लिया । कष्टों, विपदाओं से मुक्त होकर स्वर्ग, बहिश्त में मौज की जिन्दगी वास्तव में धर्म तो वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का बिताने की राह दिखायी और बताया कि हमारे माध्यम से अपने शुद्धिकरण होता है | धर्म वह तत्व है जिससे व्यक्ति अपने जीवन आराध्यों के प्रति तन, मन, धन से समर्पित हो जाओ - पूर्ण को चरितार्थ कर पाता है । धर्म दिखावा नहीं, प्रदर्शन नहीं, रूढ़ियां आस्था, पूर्ण विश्वास, पूर्ण निष्ठा के साथ भक्ति करो । तर्क, नहीं, किसी के प्रति घृणा नहीं, मनुष्य मनुष्य के बीच भेदभाव नहीं विवेक एवं युक्ति को साधना पथ का सबसे बड़ा शत्रु मान लिया अपितु मनुष्य में मनुष्यता के गुणों के विकास की शक्ति है; गया । सार्वभौम चेतना का सत्-संकल्प है । जब धर्म 'सम्प्रदाय' हो जाता राहा धर्म की उपर्युक्त धारणायें आज टूट चुकी हैं । विज्ञान ने है तो मानवीय प्रगति में बाधक हो जाता है । जब धर्म अहिंसा की हमें दुनिया को समझने और जानने का तर्कसंगत रास्ता बताया ज्योति से मर्यादित एवं संचालित होता है तो मानवीय विकास का है। विज्ञान ने यह स्पष्ट किया कि यह विश्व किसी की इच्छा का पर्याय हो जाता है। परिणाम नहीं है । विश्व तथा सभी पदार्थ कारण-कार्यभाव से बद्ध 5 मध्य युग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप हैं। भौतिक-विज्ञान ने सिद्ध किया है कि जगत में किसी पदार्थ का एवं धारणाओं में आज के व्यक्ति की आस्था समाप्त हो चुकी है। नाश नहीं होता केवल रूपान्तर मात्र होता है । इस धारणा के इसके कारण हैं। कारण इस जगत को पैदा करने वाली शक्ति का प्रश्न नहीं उठता । जीव को उत्पन्न करने वाली शक्ति का प्रश्न नहीं उठता । मध्ययुगीन चेतना के केन्द्र में 'ईश्वर' प्रतिष्ठित था । हमारा विज्ञान ने शक्ति के संरक्षण के सिद्धान्त में विश्वास जगाया । सारा धर्म एवं दर्शन इसी 'ईश्वर' के चारों ओर घूमता था । सम्पूर्ण पदार्थ की अनश्वरता के सिद्धान्त की पुष्टि की । समकालीन सृष्टि के कर्ता, पालनकर्ता, संहारकर्ता के रूप में हमने परम शक्ति पाश्चात्य अस्तित्ववादी दर्शन ने भी ईश्वर का निषेध किया है । की कल्पना की थी। उसी शक्ति के अवतार के रूप में, या उसके उसने यह माना है कि मनुष्य का स्त्रष्टा ईश्वर नहीं है । मनुष्य पुत्र के रूप में या उसके प्रतिनिधि के रूप में हमने 'ईश्वर, ईसा वह है जो अपने आपको बनाता है। या अल्लाह को प्रतिष्ठित किया तथा उन्हीं की भक्ति में अपनी मुक्ति का मंत्र मान लिया । स्वर्ग की कल्पना, देवताओं की इस प्रकार जहां मध्ययुगीन चेतना के केन्द्र में 'ईश्वर' कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध. अपने देश एवं प्रतिष्ठित था वहाँ आज की चेतना के केन्द्र में 'मनुष्य' प्रतिष्ठित अपने काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा आदि है । मनुष्य ही सारे मूल्यों का स्रोत है । वही सारे मूल्यों का प्रत्यय मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के घटक थे । वर्तमान जीवन की उपादान है । आधुनिकताबोध से सम्पन्न आज का मनुष्य 'ईश्वरवादी' धर्म से प्रेरणा ग्रहण नहीं कर सकता, भाग्यवाद के सहारे हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकता । बीसवीं शताब्दी में विकसित बीस ग्रंथों, साठ शोध- अस्तित्ववादी दर्शन में, वैज्ञानिक अवधारणाओं में तथा साम्यवादी निबंधों के साथ शताधिक लेख | विचारणा में कुछ विचार-प्रत्यय समान हैं। तथा समीक्षाएँ प्रकाशित । आपके (१) तीनों ईश्वरवादी नहीं हैं। तीनों ने ईश्वर के स्थान पर निर्देशन में तीन शोधक डी. लीट. 'मनुष्य' को स्थापित किया गया है। तथा बारह शोधक पी. एच. डी. की उपाधियाँ प्राप्त कर चुके हैं। (२) तीनों भाग्यवादी नहीं हैं। कर्मवादी तथा पुरुषार्थवादी हैं। अनेक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में (३) तीनों में मनुष्य की वर्तमान जिन्दगी को सुखी बनाने का शोधपत्रों का वाचन आकाशवाणी संकल्प है। से अनेक वार्ताएं प्रसारित । अस्तित्ववादी दर्शन में व्यक्तिगत स्वातंत्र्य पर जोर है तो रोमानिया, हंगेरी, बल्गेरिया, साम्यवादी विचारणा में सामाजिक समानता पर | इन समान एवं डॉ. महावीर सरन जैन झेकोस्लोवाकिया, पोलेण्ड, पूर्वी विषम विचार प्रत्ययों के आधार पर (एम.ए., डी.फिल्., जर्मनी, पश्चिम जर्मनी, बेल्जियम, क्या नये युग का धर्म एवं दर्शन डी.लीट्) नेदरलैंड, इंग्लैंड, इटली आदि देशों | निर्मित किया जा सकता है? में विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर विज्ञान ने शक्ति दी है । कार्यरत, संप्रति प्रोफेसर तथा अध्यक्ष, स्नाकोत्तर हिंदी एवं अस्तित्ववादी दर्शन ने स्वातंत्र्य- चेतना भाषा विज्ञान विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर । निवास पता : ९ बी, विश्वविद्यालय निवास गृह, पचपेटी, प्रदान की है । साम्यवाद ने विषमताओं को कम कराने पर बल जबलपुर - ४८२ ००१. दिया है। फिर भी विश्व में संघर्ष श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण प्रेम करो अरिहन्त से, फैले दिव्य प्रकाश । जयन्तसेन सुखद सदा, पूर्व कर्म का नाश ।। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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