Book Title: Vishvatomukhi Mangal Deep Anekant Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 8
________________ मेरा के आगे जो 'नहीं' शब्द है, वही असत् का अर्थात् नास्तित्व का सूचक है। प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व अपनी सीमा में है, सीमा से बाहर नहीं। अपना स्वरूप अपनी सीमा है, और दूसरों का स्वरूप अपनी सीमा से बाहर है, अतः पर-सीमा है। यदि विश्व की प्रत्येक वस्तु, अपने से भिन्न हर एक वस्तु के रूप में भी सत् हो जाए, तो फिर संसार में कोई व्यवस्था ही न रहे / दूध, दूध रूप में भी सत् हो, दही के रूप में भी सत् हो, छाछ के रूप में भी सत् हो, पानी के रूप में भी सत हो, तब तो दूध के बदले में दही. छाछ या पानी हर कोई ले-दे सकता है। किन्तु, याद रखिए दूध, दुध के रूप में सत है दही आदि के रूप में वह सर्वथा असत् है। क्योंकि स्व-स्वरूप सत् है, पर-रूप असत् / / वस्तुतः स्याद्वाद सत्य-ज्ञान की कुञ्जी है। आज संसार में जो सब ओर धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रिय आदि वैर-विरोध का बोलवाला है, वह स्याद्वाद के द्वारा दूर हो सकता है। दार्शनिक-क्षेत्र में स्याद्वाद वह सम्राट है, जिसके सामने आते ही कलह, ईर्ष्या, अनुदारता, साम्प्रदायिकता और संकीर्णता आदि विग्रहात्मक-दोष तत्काल पलायन कर जाते है। जब कभी विश्व में शान्ति का सर्वतोभद्र सर्वोदय' राज्य स्थापित हो पाएगा, तो वह पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org Jain Education Intemational For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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