Book Title: Vishva Kalyan Ka Chirantan Path Seva Path Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 7
________________ कहाँ से आएगा ? सिन्धु की पूजा करने का मतलब है, पहले बिन्दु की पूजा की जाए ! माला फेरने या जप करने मात्र से उसकी पूजा नहीं हो जाती, बल्कि बिन्दु में जो उसकी विराट् चेतना का प्रतिबिम्ब है, उसकी पूजा-सेवा करने से ही उसकी (प्रभु की) पूजासेवा हो सकती है। अतः भगवान को मन्दिरों में ही नहीं, अपने अन्दर में भी देखना है। जीवन में देखना है, जन-जीवन में देखना है, जनार्दन की सेवा को जन-सेवा में बदलना है। देश में आज कहीं दुर्भिक्ष की स्थिति चल रही है, दुष्काल की काली घटा छाई हुई दीख रही है, कहीं बाढ़ और तूफान उफन रहे हैं, तो कहीं महँगाई आसमान छ रही है। पर सच बात तो यह है कि अन्न की महँगाई उतनी नहीं बढ़ी है, जितनी महंगाई सद्भावनाओं की हो गई है। आज सद्भाव, प्रेम और सेवा-भाव महँगा हो रहा है। एकदूसरे की हितचिता महँगी हो रही है। इन्हीं चीजों का दुष्काल अधिक हो रहा है। स्वार्थ, अहंकार आज खुल कर खेल रहे हैं। और जीवन में, परिवार में, समाज और देश में नित नए संकट के शूल विछाए जा रहे हैं। मैंने जो आपको पहले बताया है कि यह मानव जीवन सुखों की महानतम ऊँचाई पर भी पहुँच सकता है, और दुःखों के गहन गर्त में भी जाकर गिर सकता है। उसके सुख-दुःख स्वयं उसी पर निर्भर हैं। जब वह अपने अन्तर में से स्वार्थ और अहंकार को बाहर निकालकर अपने अंदर सेवा की भावना भरकर कार्य करना प्रारम्भ कर देता है, तब निश्चय ही विश्वकल्याण का पावन पथ प्रशस्त हो सकता है। और, यही आज के संघर्षरत एवं समस्याग्रस्त विश्व-कल्याण का सहज-सुलभ मार्ग है। विश्वकल्याण का चिरंतन पथ : सेवा-पथ Jain Education Interational www.jainelibrary.orgPage Navigation
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