Book Title: Vinshottari Dasha Sadhan
Author(s): Satyanand
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 4
________________ गुरुकी महादशाने कुल दिन ७२०० में से जन्म के पहले महादशा के बीत चुके २४५७.३००२ दिन घटा दें। बाकीके ३७४२.६९९८ दिन जन्मके बाद भोग्य होंगे । अन्तर्दशाकी सारणी नं० ३ के अनुसार शुक्रमें राहुकी अन्तर्दशा चल रही है जो शुक्रकी महादशा लगनेसे ३६६० दिनके बाद पूरी होती है। इसमेंसे ३४५७.३००२ दिन जन्मके पहले ही बीत चुके हैं। बाकी २०२.६६६८ दिन जन्मके बाद भोग्य होंगे । जन्मके समयतक सन् १९७५ का साल पूरा बीत चुका था और २७ अक्तूबरतक सन् १९७६ के भी ३०१ पूरे दिन बीत चुके थे ( सारणी नं ५ श्रौर ६ से देखें) और उसे गणित ढंगसे, जहाँ बीते हुए वर्ष दिन इत्यादि की ही संख्या लिखी जाती है, लिख लें। राहुके भोग्य २०२.६९९८ दिनों को घण्टा, मिनट श्रादिमें बना लीजिये और इसे जन्म समयमें जोड़ लें। यथा d. h. m. ०५ ४७ ४३ ५२ ४३ ५२ ४३ y. जन्म समय सन् १९७५ राहुका भोग्य अन्तर्दशा अर्थात् सन् १९७५ सन् १९७६ y. जन्म समय सन् १९७५ राहुमें सूर्यका भोग्य प्रत्यन्तर सन् १९७५ ३०१ १० २०२ १६ ५०४ १३८ Scanned by CamScanner ०२ ०२ S. 00 सन् १९७७ मई १६ को २ घं. ५२ मि. ४३ से. तक राहुका अन्तर चलेगा । अब यदि और भी सूक्ष्म यानी जन्मके समयकी प्रत्यन्तर दशा भी निकालनी हो तो सारणी नं० ४ देखें । राहुकी भोग्य अन्तर्दशा २०२ दिन १६ घं. ४७ मि. ४३ से. में चन्द्र और भौमका प्रत्यन्तर १५३ दिन राहुकी भोग्य अन्तर्दशामें से घटानेपर चल रहे सूर्यके प्रत्यन्तर का भोग्य समय ४६ दिन १६ घं. हो जायगा । इसे निम्नलिखित प्रकार लिखा जायगा -- पूरा बाकी है। जिसे ४७ मि. ४३ से. ज्ञात जन्मकाल सन् १६७६ अक्टूबर २८, १० घं. ५ मि. ० से. I. S. T. d. h. m. S. ३०१ १० ०५ ४६ १६ ४७ ३५१ ०० सन् १९७६ अक्तूबर २८, १० घं. ५ मि. ० से. I.ST. ४३ ०२ ५२ ४३ सन् १९७६ दिसम्बर १७, २ घं. ५२ मि. ४३ से. I.S.T. तक रविका प्रत्यन्तर रहेगा। महादशाका इसी तरहसे जन्म दिनमें महादशा, अन्तर, प्रत्यन्तरतक के दिन जोड़ते हुए वर्तमान या अभीष्ट महादशा, अन्तर या प्रत्यन्तर किस तारीख से किस तारीख तक रहेगा, ज्ञात कर सकते हैं। भभोग और भयात्के समय के अनुपातसे 'जन्मके पूर्व बीता हुआ भाग निकालनेकी प्रचलित प्रक्रियामें चन्द्रमाके नक्षत्रभोगकाल में जितना समय लगा है उससे जन्म के समयतक नक्षत्रके बीते हुए भोगका अनुपात निकाला जाता है परन्तु चन्द्रमा नक्षत्रका भोग समान गति चलते हुए तो करता नहीं। उसकी गतिमें हरदम घट-बढ़ होती रहती है। इससे नक्षत्र भोगके समय के अनुपातसे जन्म चन्द्रस्पष्ट शुद्ध न निकलकर स्थूल होता है। ज्ञानमण्डल सौर पञ्चाङ्गमें प्रतिदिनका बारह बारह घण्टेका निरयण चन्द्रस्पष्ट दिया रहता है । आप साधारण अनुपातसे यही समझेंगे कि जितना २४ घण्टेमें चला है उसका आधा १२ घण्टेमें चला होगा । परन्तु बारह-बारह घण्टोंकी वास्तविक चन्द्रस्पष्टसे तुलना करनेपर आपको स्पष्ट हो जायगा कि साधारण अनुपात करने में और अन्तर्न्यास पद्धतिसे अनुपात करनेमें कितनी घट-बढ़ हुआ करती है। ज्ञानमण्डल सीर पञ्चाङ्गमें नक्षत्रके समाप्त होने का समय भी शुद्ध दिया रहता है । आप भभोग और भयातकी प्रक्रियासे भी चन्द्रस्पष्ट साधारण अनुपात से निकालकर तुलना करें तो मालूम होगा कि जन्म चन्द्रस्पष्ट लगभग 23 कला कम ही आ रहा है। यह अन्तर इतने ही अल्पकालमें चन्द्रमा की गतिमें घट-बढ़ के कारण ग्रा रहा है। इससे यह स्पष्ट हो जायगा कि महादशा निकालनेके लिए शुद्ध और सूक्ष्म जन्म चन्द्रस्पष्ट निकालनेका कितना महत्त्व है। उपर्युक्त उदाहरणमें बारह-बारह घंटोंके चन्द्रस्पष्टमें जन्म समयके अनुसार चालन देकर साधारण अनुपातसे चन्द्रस्पष्ट निकाला गया है। यदि और भी सूक्ष्म निकालना हो तो यह चालन भी अन्तर्न्यास पद्धतिसे निकालना होगा ।

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