________________ में नियुक्त करते हैं / साधु-साध्वियों के पठन-पाठन का प्रबन्ध भी गणी ही करते हैं / ऐसे गणी का विनय पूर्वोक्त चारों प्रकार से करना गणीविनय कहलाता है। इस प्रकार 13 किस्म के विनयपात्रों का विशद वर्णन समझकर विनयतप को जीवन में अपनाना चाहिए। श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org