Book Title: Vibhinna Chatravruttiya Mahattva aur Prakar
Author(s): Ranjitsinh Bhandari
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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________________ विभिन्न छात्रवृत्तियाँ : महत्व और प्रकार 0 श्री रणजीतसिंह भण्डारी (सोजत्या) (परामर्शक, एस० आई० ई० आर० टी०, उदयपुर) स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु राज्य व केन्द्र सरकार ने पर्याप्त ध्यान दिया है। यही कारण है कि सम्पूर्ण देश में प्राथमिक विद्यालयों से लेकर महाविद्यालयों का जाल बिछ गया है तथा उनमें कार्यरत अध्यापकों व प्राध्यापकों की जितनी संख्या है, उतनी किसी अन्य विभाग या कार्यालय में भी नहीं है। सरकार ने भी विभिन्न विकास योजनाओं की तुलना में शिक्षा के मद में अब तक बहुत अधिक धनराशि व्यय की है। यही कारण है कि हमारे देश में शिक्षितों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है । सन् १९८१ में की गई जनगणना के आँकड़ों से भी यह स्पष्ट है; लेकिन जब तक देश में शत-प्रतिशत लोग शिक्षित नहीं हों तब तक लक्ष्य अधूरा ही रहेगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर विभिन्न प्रयास चल रहे हैं। इन प्रयासों में छात्रवृत्ति भी एक प्रमुख प्रयास है। हमारी शिक्षा व्यवस्था का लक्ष्य मात्र लिखाना-पढ़ाना ही नहीं है अपितु शिक्षा के माध्यम से विभिन्न प्रतिभाओं को खोजकर उन्हें समुचित शिक्षा प्रदान करना भी है। आजादी के पूर्व तक स्थिति यह थी कि बहुत से ऐसे प्रतिभावान व सक्षम छात्र जिनकी रुचि वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और व्यवसाय-वाणिज्य सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करने की और होती थी, लेकिन निर्धनता व अर्थाभाव के कारण वे इस तरह के ज्ञान को प्राप्त कर उस ज्ञान का देश-सेवा में सदुपयोग करने से वंचित रह जाते थे। ऐसी सैकड़ों प्रतिभाएँ प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाती थी, किन्तु भारत की आजादी के बाद स्वतन्त्र भारत की सरकार ने इस वस्तु-स्थिति को समझा और उसके लिये केन्द्र व राज्य स्तर पर अनेक प्रकार की छात्रवृत्तियाँ देना स्वीकार किया, जिनको प्राप्त कर हजारों निर्धन, गरीब और प्रतिभावान छात्रों ने अपने उज्ज्वल भविष्य का निर्माण किया है तथा उससे देश के वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और व्यापार-वाणिज्य सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि की है। न केवल देश को अपितु ऐसे प्रतिभावान छात्रों ने अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया आदि उपमहाद्वीपों के विभिन्न देशों में जाकर अपनी प्रतिभा व क्षमता का परिचय भी दिया है । इससे उनकी स्वयं की आर्थिक व पारिवारिक स्थिति तो सुधरी ही है, इसके साथ ही देश का मस्तक भी ऊँचा हुआ है । इसका श्रेय छात्रवृत्तियों को ही जाता है। . इस प्रकार छात्रवृत्ति न केवल आर्थिक सहायता है, अपितु यह प्रतिभावान छात्रों को प्रोत्साहित करने का भी एक सशक्त माध्यम है। इससे छात्रों में स्वाभिमान और आत्मविश्वास जागृत होता है तथा उनमें नये अनुसन्धान व शोध-खोज करने की जिज्ञासा तीव्र होती है । लेकिन यह एक दुर्भाग्य ही है कि इन विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियों की जानकारी छात्रों को प्रायः नहीं रहती है। शहरों में भी ऐसे अनेक प्रतिभावान् छात्र मिल जायेंगे जो छात्रवृत्ति प्राप्त करने की अज्ञानता के कारण अपनी प्रतिभा को कुण्ठित किये हुए हैं। सुदूर ग्रामीण अंचलों में तो यह स्थिति और भी ज्यादा खराब है। इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक स्कूल के प्राचार्य, प्रधानाध्यापक, अध्यापक आदि प्रतिभावान व जरूरतमन्द छात्रों को छात्र-वृत्तियाँ देने की ओर आकर्षित करें, उन्हें आवश्यक जानकारियां दें, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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