Book Title: Vedottar Kal me Bramhavidya ki Punarjagruti
Author(s): Jaybhagwan Jain
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 6
________________ जयभगवान जैन : वेदोत्तरकाल में ब्रह्मविद्या की पुनर्जागति : ४८६ 4-0-0-0-0----------- सुगम नहीं है. यह विषय बहुत सूक्ष्म है. नचिकेता ! तुम कोई दूसरा वर मांग लो, इसे छोड़ दो, मुझे बहुत विवश न करो.' इस पर नचिकेता ने कहा--'निश्चय से ही यदि देवों ने भी इसमें सन्देह किया है और आप स्वयं भी इसे सुगम नहीं कहते तो आप जैसा इसका वक्ता दूसरा कौन मिल सकता है, इसके समान दूसरा वर भी क्या हो सकता है ?' यम ने परीक्षार्थ यह जानने के लिये कि नचिकेता आत्मज्ञान का अधिकारी है या नहीं, उसे बहुत से प्रलोभन दिये. हे नचिकेता! तू सौ वर्ष की आयु वाले पुत्र और पौत्र मांग. बहुत से पशु, हाथी, घोड़े और सोना मांग, भूमि का बहुत बड़ा .. भाग मांग और जबतक तू जीना चाहे उतनी आयु का वर मांग. तू इस विशाल भूमि का राजा बन जा. जो भी कामनायें तू इस लोक में दुर्लभ समझ रहा है वे सभी जी खोलकर तू मुझ से मांग. रथों और बाजों सहित ये अलभ्य रमणियां तेरी सेवा के लिये देता हूं. इन सभी वस्तुओं को ले ले, परन्तु हे नचिकेता! मरने के अनन्तर की बात मुझ से न पूछ.' पर नचिकेता इन प्रलोभनों से तनिक भी भ्रम में न पड़ा. वह बोला-'हे यम ! ये सब उपभोग के सामान दो दिन के हैं, ये सब इन्द्रियों का तेज नष्ट करने वाले हैं. जीवन अल्पकाल तक ही रहने वाला है. इसलिये ये सब नाच-गान, हाथीघोड़े मुझे नहीं चाहिए, धन से कभी तृप्ति नहीं होती. मुझे तो वही वर चाहिए.' नचिकेता की इस सच्ची लगन को देख यम विवश हो गया. उसने अन्त में जन्म-मरण सम्बन्धी आत्मज्ञान दे नचिकेता के छटपटाये हुए दिल को शान्ति दी. उपरोक्त कथा में जिस नचिकेता का उल्लेख है वह कठ जाति का ब्राह्मण मालूम होता है. प्राचीन काल में यह जाति पंजाब के उत्तर की ओर रावी नदी से पूर्व वाले देश में, जिसे आजकल मांझा (लाहौर, अमृतसर वाला देश) कहते हैं, रहा करती थी. इसी कारण इस देश का पुराना नाम कठ है.' उपर्युक्त कथा के समय यह जाति मध्यदेश अर्थात् आर्यखण्ड में बसी हुई थी. यम और यमलोक-वैवस्वत यम, जिसके पास नचिकेता ज्ञान-प्राप्ति के लिये गया था, उस मगध देशवासी सूर्यवंशी यम शाखा का एक क्षत्रिय राजा मालूम होता है, जिसने मध्यदेश के दक्षिण की ओर एक स्वतन्त्र जनपद कायम कर लिया था. जैन परम्परा के अनुसार इस शाखा का मूल संस्थापक आदि ब्रह्मा वृषभ अपर नाम विवस्वत मनु का पुत्र बाहुबली था. आदि ब्रह्मा ने प्रव्रज्या लेने से पहले भारतभूमि का बंटवारा कर उत्तर भारत का राज्य अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को और दक्षिण का भाग बाहुबली को दे दिया था. बाहुबली ने दक्षिण के अशमक (कर्णाटक) देश के पोदनपुर स्थान पर अपनी राजधानी बसा ली थी. बाहुबली पीछे से राज्य छोड़ त्यागी तपस्वी हो गया था और उसने एक साल पर्यन्त कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े रहकर मन वचन काय तथा समस्त इन्द्रियों के यमन द्वारा ऐसी घोर तपस्या की थी कि उसे देख कर देव, असुर, मनुष्य सभी लोग चकित हो गये थे. उस तपस्या के द्वारा उसने यम व मृत्यु का सदा के लिये अन्त कर दिया था. वह मृत्यु की मृत्यु बन गया था. इसलिये वह लोक में यम नाम से प्रसिद्ध हुआ और पीछे से इस शाखा के राजा यम व जम के ही नाम से पुकारे जाने लगे. इस तरह यह उनकी एक परम्परागत उपाधि बन गई और कर्णाटक देश यमलोक के नामसे प्रसिद्ध हुआ. इसीलिए भारतीय अनुश्रुति में दक्षिण का अधिष्ठाता देवता यम कहा गया है, यम पीछे १. जयचन्द विद्यालंकार-भारतीय इतिहास को रूपरेखा प्रथम जिल्द पृ० २६०. २. (क) विन्धयगिरि पर्वत का शिलालेख-लगभग शक सं०११०२ वाला जैन शिलाशेखसंग्रह प्रथम भाग पृ० १६६-१७५. (ख) नव सदी का श्रीगुणभद्राचार्य विरचित उत्तरपुराण, (ग) छठी सदी के पूज्यपाद स्वामी ने अपने निर्वाण भक्ति ग्रन्थ में विम्ध्यगिरि के पोदनपुर नगर का सिद्धतीर्थ के रूप में उल्लेख किया है. (घ) वि० सं०१२८५ का श्रीमदनकीर्ति यति द्वारा रचित शासनचतुर्विंशिका ।२। ३. अथर्ववेद ८.१०, ४, ६, में यम को मृत्यु का आदि अन्तक कहा गया है और उसे पितरों में सबसे प्रमुख पित्र बताया गया है. उसका स्वधा शब्द पूर्वक श्राद्ध करने को कहा गया है. ४. बृहदारण्यक उपनिषत् ३. ६, २१. Jain Education www.jainelibrary.org

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