Book Title: Vayad Gaccha ka Itihas Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 4
________________ Vol. II - 1996 वायडगच्छ का इतिहास ५३ आबू १२९८ वैशाख वदि २ पार्श्वनाथ जैन देरासर, प्राचीन लेख संग्रह रविवार की धातुप्रतिमा वणा, लेखांक ३७ पर उत्कीर्णलेख काठियावाड १२९८ शिलालेख शत्रुजय U. P. Shah-"A Forgotten chapter in the history of Shvetambar Jaina Church" J. O. A. S. B. vol 30, part I, 1955 A. D., Pp 100-113. १३०० वैशाख वदि ५ पार्श्वनाथ अनुपूर्तिलेख, आबू, भाग २ बुधवार की प्रतिमा पर लेखांक ५२६. अजितनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेख संग्रह सिरोही लेखांक ७ १३३८ ज्येष्ठवदि १ . शांतिनाथ चन्द्रप्रभ जैनलेखसंग्रह की प्रतिमा पर जिनालय, भाग ३, लेखांक २२३२ उत्कीर्णलेख जैसलमेर १३४९ चैत्रवदि ६ अमरचन्द्रसूरि टांगडियावाला प्राचीन जैन लेखसंग्रह शनिवार की प्रतिमा पर उत्कीर्णलेख जैनमंदिर, पाटण भाग २, लेखांक ५२३ अंतिम दो प्रतिमालेखों को छोड़ कर शेष अन्य लेखों में यद्यपि इस गच्छ से सम्बद्ध कोई महत्त्वपूर्ण विवरण ज्ञात नहीं होता फिर भी वे लगभग १५० वर्षों तक इस गच्छ के स्वतंत्र अस्तित्व के प्रबल प्रमाण हैं । वि. सं. १३३८ के लेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ की पूर्व प्रचलित परिपाटी, जिसके अनुसार प्रतिमाप्रतिष्ठा का कार्य श्रावकों द्वारा होता था, को त्याग कर अब स्वयं मुनि या आचार्य द्वारा प्रतिपारित किया जाने लगा | वायडगच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम साक्ष्य इस गच्छ के प्रसिद्ध आचार्य जिनदत्तसूरि के ख्यातिनाम शिष्य प्रसिद्ध ग्रन्थकार अमरचन्द्रसूरि की पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। मुनि जिनविजयजी ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं. १३४९ चैत्रवदि शनौ श्री वायटीयगच्छे-श्री जिनदत्तसूरि शिष्य पंडित श्री अमरचन्द्रमूर्तिः पं. महेन्द्रशिष्यमंदनचंद्रख्या (ख्येन) कारिता शिवमस्तु । इस प्रकार स्पष्ट है कि विक्रम संवत् की चौदहवीं शताब्दी में इस गच्छ के अनुयायियों ने अपने पूर्वगामी आचार्य की प्रतिमा निर्मित कराकर उनके प्रति पूज्यभाव एवं सम्मान व्यक्त किया । इस गच्छ के प्रमुख ग्रन्थकारों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है: जीवदेवसूरि 'प्रथम' : वायडगच्छ के पुरातन आचार्य जीवदेवसूरि 'परकायप्रवेशविद्या' में निपुण और अपने समय के प्रभावक Jain Education international Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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