Book Title: Varn Padarth ka Ek Abhinna Guna Author(s): Anilkumar Jain Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 3
________________ २३६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड कुछ महत्वपूर्ण पहलू संक्षेप में, रंगों (वों) के सम्बन्ध में जैन दृष्टिकोण को दो भागों में बाँटा जा सकता है-(१) रंग पदार्थ पदार्थ का एक मूलभूत (अभिन्न) गुण है, तथा (२) ये रंग पांच प्रकार के होते हैं । अब हम इन दोनों तथ्यों को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में व्याख्या करें । यह सर्व विदित है कि संसार में बहुत सी ऐसी वस्तुएं हैं जिनके कोई रंग नहीं होता । उदाहरण के तौर पर, अच्छे किस्म का कांच (ठोस), आसवित जल (द्रव) तथा वायु (गैस) रंग विहीन होते हैं। तब हम यह कैसे कह सकते हैं कि रंग पदार्थ का अभिजान्य गुण होता है ? इस प्रकार के पदार्थों में रंगों के अस्तित्व की व्याख्या करने के लिए हमें मूलभूत कणों के गुणों के बारे में विचार करना होगा। क्वार्क पदार्थ का सबसे छोटा कण माना जाता है । हम इसे अपनी आंखों से नहीं देख सकते हैं, लेकिन आधुनिक विज्ञानानुसार प्रत्येक क्वार्क का कुछ रंग अवश्य होता है । जब हम क्वार्क को ही नहीं देख सकते, तब उसके रंग का देख पाने का तो कोई प्रश्न हो नहों है। तब 'क्वार्क का रंग लाल है', ऐसा कहने का हमारा तात्पर्य क्या है ? यह कहने से हमारा तात्पर्य यह है कि लाल क्वाकं हमेशा इस आवृत्ति से कम्पन करता है जो कि लाल रंग को प्रदर्शित करते हैं। लेकिन इस आवृत्ति से सम्बन्धित तरंग दैर्ध्य की तीव्रता इतनी कम होती है कि हम उसे देख नहीं सकते हैं। एक बात यह और कि जब एक रंगीन क्वाक एक प्रतिरंग के प्रतिक्वार्क से मिलता है तो रंगहीन मेसॉन बनता है। इस प्रकार रंगोन क्वाक रंगहीन मेसॉन का निर्माण करते हैं। यहां हम यह मान सकते हैं कि क्वाकं परमाणु का ही एक रूप है तथा मेसॉन सबसे छोटा स्कन्ध है। अतः विज्ञान के अनुसार, परमाणु (क्वार्क) हमेशा रंगीन ही होता है लेकिन स्कन्ध ( मेसॉन, आदि) रंगीन भी हो सकते हैं तथा रंगहीन भी हो सकते हैं । अत; हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रत्येक वस्तु बहुत सारे रंगीन परमाणुओं से मिलकर बनी होती है । इस अपेक्षा से रंग पदार्थ का एक मूलभूत ( अभिन्न ) गुण है। लेकिन यहाँ हमको यह मानना होगा कि यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक स्कन्ध ( वस्तु) रंगीन हो हो । दूसरा मुद्दा जिस पर विचार करना आवश्यक है, वह यह है कि लोक में कुल कितने रंग उपलब्ध हैं या यूं कहें कि पदार्थ में कुल कितने रंग होते हैं ? जैन धर्मानुसार रंग पाँच प्रकार के होते हैं । लेकिन आधुनिक विज्ञान के अनुसार ऐसा नहीं है। विद्युत-चुम्बकीय स्टेक्ट्रम के दृश्य क्षेत्र की प्रत्येक तरंग दैर्ध्य किसी न किसी रंग से अवश्य सम्बन्धित होती है। यदि तरंगदैघ्यं में थोड़ा-सा भी परिवर्तन आ जाये तो रंग भी बदल जाता है। इस प्रकार, रंग कई प्रकार के हो सकते हैं। व्यवहार में भी हम देखते हैं कि रंग जई प्रकार के होते हैं। तब हम इस बात की पुष्टि कैसे करें कि पदार्थ के पांच रंग ही होते हैं ? सर्वप्रथम हमें रंगों को दो भागों में विभक्त करना होगा-(१) प्राथमिक (मूल) रंग, तथा (२) व्युत्पन्न रंग । मूल रंग कुल पाँच प्रकार के होते हैं । व्युत्पन्न रंग बहुत से हो सकते हैं । जब हम यह कहते हैं कि वस्तु का रंग पाँच मूल रंगों से भिन्न हैं, तब यह हो समझना चाहिये कि उस वस्तु का रंग इन पांच मूल रंगों के विभिन्न अनुपात में मिलने से हा बना है। पांच रंगों के अस्तित्व को पुनः क्वार्क के रंगों की व्याख्या के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है ।क्वाक का रग तोन रंगों में से कोई एक होता है। यदि हम क्वार्क को परमाणु का ही रूप मानें तो, विज्ञान के अनुसार प्रत्येक परमाणु (क्वार्क) का रंग तोन में से कोई एक हो होगा। ये तोन रंग नीला, पीला तथा लाल हैं। लेकिन स्कन्ध के कई रंग हो सकते हैं। स्कन्ध का रंग उसमें निहित परमाणुकों के रंगों पर आधारित होता है । लेकिन अभी समस्या का पूर्ण हल नहीं हो पाया है । जैन धर्म के अनुसार मूल रंग तीन नहीं, पांच होते हैं। शेष दो रंग सफेद तथा काला है। विज्ञान के अनुसार 'किसी वस्तु का रंग सफेद है' यह कहने का तात्पर्य यह है कि वह वस्तु दृश्य क्षेत्र के सभी विकिरणों का परावर्तन या उत्सर्जन करती है। इसी प्रकार, किसी वस्तु का रंग काला है, यह कहने का तात्पर्य यह है कि वह वस्तु दृश्य क्षेत्र के सभी विकिरणों का अवशोषण कर लेती है। हम यह कह सकते है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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