Book Title: Vaishali Shodh Sansthan me Shodh ke Kshitij
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 5
________________ १ १४. ,, योगेन्द्र शर्माः-अपभ्रंशके चरित काव्य । १५. ,, श्रीमती रामसेनही सिन्हा-आदिकवि वाल्मीकि और विमलका तुलनात्मक अध्ययन । , डी० पी० मिश्रा-सीतामढ़ी जिलेकी बोली। ४ १७. ,, एम० एस० प्रसाद सिंह-श्रमण और ब्राह्मण परम्पराओंमें आचारका स्वरूप । ,, महेश्वर प्रसाद सिंह-संस्कृत नाटकोंमें प्राकृत । १९. ,, योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा-वज्जिकाकी धातुओं और क्रियाओंके रूपोंका अध्ययन (डी० लिट् हेतु) २०. ,, शशिभूषण प्रसाद सिंह-शब्दोंकी पौराणिक व्याख्यायें । । ___ उपरोक्त शोधार्थियोंके शोध विषयोंका अनुशीलन करने पर सारणी १ प्राप्त होती है । इससे स्पष्ट है कि प्रायः शोधार्थी ललित साहित्य पर ही शोध कर रहे हैं; दुस्तर साहित्य पर एक तिहाईसे भी कम सारणी १. वैशाली शोध संस्थानकी शोध दिशायें विषय शोधार्थी संख्या १. साहित्य २. न्याय या दर्शन ३. तुलनात्मक अध्ययन ४. भाषाविज्ञान ५. अर्थशास्त्र, राजनीति आदि विषय ५ योग ४९ कार्य हो रहा है। जैन विधाओं तथा प्राकृत भाषाओंके वैज्ञानिक विषयोंके ग्रन्थोंके आधुनिक रूपमें अध्ययन की नितान्त आवश्यकता है । लेकिन इस संस्थानसे इसके अनुरूप किसी भी विषय पर किसी शोधार्थीने कार्य किया प्रतीत नहीं होता । ऐसा प्रतीत होता है कि शोधार्थी बौद्धिक श्रमके बिना ही अपनी आजीविका योग्य उपाधि लेकर संतुष्ट हो जाते हैं। संस्थानके उद्देश्योंकी समुचित पूतिके लिये अनुसंधान विषयोंकी अधिक विविधता अपेक्षित है। संस्थान इस दिशामें प्रयत्नशील है। ३. पुस्तकालय : पुस्तकालय शोधका प्रमुख अंग होता है । इस दृष्टिमें संस्थानमें भी एक पुस्तकालय है । इसमें प्राकृत जैनशास्त्र, पालि और संस्कृतकी प्राचीन और नवीन पुस्तकोंके अलावा प्राचीन इतिहस, भारतीय और पाश्चात्य दर्शन, व्याकरण, शब्दकोष आदिसे सम्बन्धित लगभग १२१२९ ग्रन्थ है । संस्थानके विद्यार्थियोंके अतिरिक्त बाहरके शोध प्रज्ञ भी आकर इस पुस्तकालयका उपयोग करते हैं। दुर्भाग्यकी बात है कि इस पुस्तकालयमें हस्तलिखित ग्रंथोंका संग्रह नहीं किया जाता। ४. प्रकाशन विभाग : संस्थानमें एक स्वतंत्र प्रकाशन विभाग है। इस विभागका मुख्य लक्ष्य प्राचीन विद्याओं-विशेषकर जैन शास्त्र और प्राकृतके क्षेत्रमें तैयार किये गये उच्चस्तरीय शोध प्रबन्ध तथा प्राचीन अनुपलब्ध ग्रंथोंका सम्पादनकर उन्हें प्रकाशित करना है। प्रकाशन हेतु ग्रंथोंका चयन प्रकाशन समितिकी अनुशंसानुसार होता है । संस्थानके निर्देशक और तिरहुत कमिश्नरीके कमिश्नरके अतिरिक्त पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, पं० दलसुखभाई मालवणिया तथा लक्ष्मीचन्द्र जैन, इस समितिके सदस्य हैं । -४७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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