Book Title: Vaigyanik Aaine me Jain Dharm Author(s): Rajiv Prachandiya Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 6
________________ भाव दोनों प्रकार की हिंसा होती है। मद्य (शराब)पीने से विचार संयम, ज्ञान, पवित्रता, दया, क्षमा आदि समस्त गुण उसी समय मन में मोहादि उत्पन्न करते हैं जिससे अभिमान आदि कुभाव उत्पन्न होते है। यह अखाद्य और अपेय पदार्थ आत्मतत्त्व को अपकर्ष की ओर उन्मुख करते हैं। ऐसे खानपान से हृदय और मस्तिष्क दोनों ही प्रभावित होते हैं फलस्वरूप स्मृति-स्खलन तथा अशुचि एवं तामसी वृत्तियां उत्पन्न होती हैं। उपर्यकित विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जैन धर्म के सिद्धान्त केवल सैद्धांतिक या शास्त्रीय ही नहीं अपितु व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी हैं / जैन धर्म वस्तुतः एक वैज्ञानिक धर्म है। दहेज-एक सामाजिक अभिशाप आजकल की परिस्थिति में साधारण गृहस्थ के लिए विवाह करना मृत्यु के समान है। आजकल मोल-तोल होते हैं। दहेज का इकरार पहले हो चुकता है तब कहीं सम्बन्ध होता है। पूरा दहेज न मिलने पर सम्बन्ध टूट भी जाता है। दहेज के दुःख से व्यथित माता-पिताओं को देखकर बहुत सी सहृदया कुमारियाँ आत्महत्या कर समाज उनके जीवन का मूल्य भी नहीं समझा जाता / बीमार होने पर उनका पूरा इलाज भी नहीं कराया जाता। यहां तक कि कन्या का जन्म होने पर माता-पिता रोने लग जाते हैं। इसका दहेज ही मुख्य कारण है / इस समय ऐसे धर्मभीरु साहसी सज्जनों की आवश्यकता है कि सबसे पहले अन्य बातों को छोड़कर अपने सदाचार की रक्षा के लिए अथवा कुलाचार की रक्षा के लिए और सच्चे धर्म की प्राप्ति करनी हो तो जल्दी ही इस बुरी प्रथा को छोड़ दें और अपने लड़कों के विवाह में दहेज के लेन-देन की प्रथा बन्द कर दें। यह कुप्रथा लड़के वालों के स्वार्थ-त्याग से ही मिटेगी अन्यथा नहीं। यदि यह रिवाज चलता रहा तो समाज की भीषण स्थिति हो जाएगी। -आचार्य श्री देशभूषण, उपदेशसारसंग्रह, कोथली, 1976, पृ० 32-33 से उद्धृत 1. "तम्मद्यव्रतयन्न धूतिलपरास्कंदीव यात्यापदं / तत्पाची पुनरेक पादिव दुराचार चरन्मज्जति // " -सागारधर्मामत, अध्याय 2, लोक सं०५ जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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