Book Title: Uttar Gujaratni Boli ma Vaparata Ketlak Shabdo Author(s): Ramesh A Oza Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ 122 येयली उत्तर गुजरातना महेसाणा जिल्लामां 'येयली' शब्द मोटेभागे प्रचलित छे, कसली नहि, लोटी क्वचित् ज. सा. जो. को. अने बृ.श.को. 'टोयलुं' अने 'टोयली' बने शब्दो नोधे छे. 'टोयल नो अर्थ 'घी - तेल भरवानी रोजना वपराशनी पहोळा मोंनी लोटी के कसली, पाणी के दूध येवानुं वासण, तेने 'येवुं' पण कहे छे. ज्यारे 'टोयली' रसोडा रोजना वपराश माटे घी - तेलने राखवा माटे, साधारण रीते पित्तळनी बेठा मोंनी नीची होय छे. अने आना मूळमां 'येवुं' क्रियापद छे, जेनो अर्थ छे 'टींपे ये पावुं' आटलुं ज नहि पण 'थोडुं थोडुं वपराशमां लेवुं' आमां सरळता, सुगमत अने करकसरनो भाव रहेलो छे. 'टोयो' 'खेतर के सीमनुं रखेवाळं करतो रखोपियो' ए जुदो शब्द छे. ★ पराठ कोशमां 'पराट' एवं शब्दरूप आप्युं छे, जेनो अर्थ छे 'गधेडा पर भीडवाना काममां आवती बकराना वाळनी दोरी'. बृ.गु.को. मां एने 'दोरी' ने बदले 'गादी' कही छे ते भूल छे. उत्तर गुजरातमां महेसाणा जिल्लामां 'ठ' वाळं शब्दरूप अने एवी वाळ के चींथरांमांगी बनावेली दोरी (दोरडा जेवी) वपराय छे, जे मोटेभागे चप्पट वणेली होय छे, (त्रम सरानी) जेथी प्राणीने खूंचे नहि. पूरक नोंध : सं. आस्तृत प्रा. अट्ठिय ('ऋ' कारने लोधे दंत्य 'त्थि' ने बदले मूर्धन्य 'ट्ठि' पर + अट्ठिय = परट्ठियनो अर्थ 'उपर बांधवा माटे जे वपराय छेते. एवी व्युत्पत्ति करी शकाय जो के आ एक अटकळ छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4