Book Title: Uposath Paushadh Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 5
________________ १०४ जैन धर्म और दर्शन सकते हैं कि उसमें बुद्ध के मुख से बौद्ध परंपरा में प्रचलित उपोषथ के स्वरूप की तो प्रशंसा कराई गई है और बाकी के उपोषथों की निन्दा कराई गई है । यहाँ हमें ऐतिहासिक दृष्टि से देखना मात्र इतना ही है कि बुद्ध ने जिस गोपालक उपोषथ और निर्ग्रन्थ उपोषथ का परिहास किया है वह उपोषथ किस-किस परंपरा के थे ? निर्मन्थ उपोषथ रूप से तो निःसंदेह निर्ग्रन्थ-परंपरा का ही उपोषथ १ लिया गया है पर गोपालक उपोषथ रूप से किस परम्परा का उपोषथ लिया है ? यही प्रश्न है । इसका उत्तर जैन परंपरा में प्रचलित पौषध-विधि और पौषध के प्रकारों को जानने से मलि-भाँति मिल जाता है। जैन श्रावक पौध के दिन भोजन करते भी हैं इसी को लक्ष्य में रखकर बुद्ध ने उस साशन पौध को गोपालक उपोषथ ' कहकर उसका परिहास किया है। जैन श्रावक अशनत्याग पूर्वक भी पौध करते हैं और मर्यादित समय के लिए वस्त्र अलंकार, कुटुम्बसंवन्ध आदि का त्याग करते हैं तथा अमुक हद से आगे न जाने का संकल्प भी करते हैं इस बात को लक्ष्य में रखकर बुद्ध ने उसे निर्ग्रन्थ उपोषथ कहकर उसका मखौल किया है । कुछ भी हो पर बौद्ध और जैन ग्रन्थों के तुलनात्मक अध्ययन से एक बात तो निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि पौषध व उपोषथ की प्रथा जैसी निर्ग्रन्थ-परंपरा में थी वैसी बुद्ध के समय में भी बौद्ध परम्परा में थी और यह प्रथा दोनों परम्परा में आज तक चली आती है भगवती शतक ८, उद्देश ५ में गौतम ने महावीर से प्रश्न किया है कि गोशालक के शिष्य श्रजीवकों ने कुछ स्थविरों ( जैन भिक्षुओं ) से पूछा कि उपाश्रय में सामयिक लेकर बैठे हुए श्रावक जब अपने वस्त्रादिका त्याग करते हैं और स्त्री का भी त्याग करते हैं तब उनके वस्त्राभरण आदिको कोई उठा ले जाए और उनकी स्त्री से कोई संसर्ग करे फिर सामायिक पूरा होने के बाद aras are पने कपड़े- अलंकार आदि को खोजते हैं तो क्या अपनी ही वस्तु खोजते हैं कि औरों की ? इसी तरह जिसने उस सामायिक वाले श्रावकों की त्यक्त स्त्री का संग किया उसने उन सामायिक वाले श्रावकों की ही स्त्री का संग किया या अन्य की स्त्री का ? इस प्रश्नका महावीर ने उत्तर यह दिया है कि सामायिक का समय पूरा होने के बाद चुराए, वस्त्रादिको खोजनेवाले श्रावक अपने ही वस्त्र आदि खोजते हैं, दूसरे के नहीं। इसी तरह स्त्री संग करनेवाले ने भी उस सामायिकधारी श्रावक की ही स्त्री का संग किया है ऐसा मानना चाहिए, नहीं कि अन्य की स्त्री का। क्योंकि श्रावक ने मर्यादित समय के लिए वस्त्र आभूषण आदि का मर्यादित त्याग किया था; मन से बिलकुल ममत्व छोड़ा न था । इस गौतम - महावीर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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