Book Title: Updesh Sara Sangraha
Author(s): Bharat Sinh
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 3
________________ आदि अयोग्य वर के साथ कन्या का विवाह न किया जाए। इसी तरह अपने पुत्र के लिए कन्या लेते समय दहेज के धन पर दृष्टि न रखकर शिक्षित, गुणी, विनीत, सुन्दर कन्या को विशेषता देनी चाहिए।" "विवाह शादी आदि के ऐसे सरल कम खर्चीले नियम बनाने चाहिए जिससे समाज का ग़रीब से गरीब व्यक्ति भी अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह सम्बन्ध कर सके।" पृ० 152 / / आचार्य जी समाज के सर्वांगीण विकास के पक्षपाती हैं। उनके अनुसार समाज का आनुपातिक विकास तभी सम्भव है, जबकि व्यक्ति अहिंसा, सत्य, त्याग, दान, सहयोग एवं पारस्परिक सहानुभूति से प्रेरित होकर स्वयं की अपेक्षा पर के विकास की ओर अधिक उन्मुख होगा। इसके लिए उन्होंने सामाजिक सहयोग पर अत्यधिक बल दिया है। यही वह मंत्र है, जिसके द्वारा समाज का समुचित विकास सम्भव है। धनी लोगों द्वारा निर्धनों की सहायता के विषय में पृ० 188 पर वे कहते हैं- "यथाशक्ति थोड़ी बहुत द्रव्य की सहायता देकर उस बेकार भाई को छोटे-मोटे काम-धन्धे में लगा देना चाहिए।" इस प्रकार "उपदेश सार संग्रह" में निश्चय ही बहुत उपयोगी बातों का उल्लेख है। यदि सभी मनुष्य इस प्रकार के परोपकारी धर्मात्मा साधुओं के उपदेशों का रस-पान कर अपने चरित्र में ढाल सकते तो इस बात में जरा भी सन्देह नहीं कि समाज का कब का उद्धार हो चुका होता / उपदेश देने की शैली अत्यधिक सहज सरल है / तरह-तरह के दृष्टान्त, उदाहरण एवं प्रमाणों को उद्धृत कर वे अपनी गूढ़-से-गूढ़ बात को भी अत्यधिक सरल बना देते हैं। थोड़ा-सा भी ज्ञान रखने वाला श्रोता उनके उपदेशों का रस-पान करने में पूर्णतः सक्षम हो सकता है। वैदिक संस्कृत, संस्कृत, प्राकृत एवं पाली तथा हिन्दी के जो भी प्रमाण उन्होंने दिये हैं और जिस प्रकार से उनकी व्याख्या की है उससे लगता है, उक्त भाषाओं पर उनकी पूर्ण पकड़ है। उपदेश के लिए उन्होंने हिन्दी के जिस रूप को चुना है वह अपने आप में पूर्ण विकसित तो है ही, सहज बोधगम्य भी है। इसीलिए आशा की जाती है कि प्रत्येक ज्ञान-पिपासु व्यक्ति इस ग्रंथ से पूर्ण रूप से लाभान्वित हो सकेगा। निश्चय ही यह ग्रन्थ व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र को विकास की एक नई दिशा देने में समर्थ हो सकेगा, ऐसी मुझे आशा है। CA 56 आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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