Book Title: Upasakdashanga aur uska Shravakachar Author(s): Subhash Kothari Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan View full book textPage 9
________________ ( viii ) अणुव्रतों की रक्षा करते हैं । उपासकदशांगसूत्र में इनको संयुक्त रूप से सात शिक्षाव्रत कहा गया है। इन व्रतों के भेद-प्रभेद में कुछ क्रम का अन्तर पाया जाता है उसको एक चार्ट के द्वारा इस अध्याय में प्रस्तुत किया गया है। उसके बाद गुणवतों और शिक्षाव्रतों के स्वरूप, भेद-प्रभेद एवं अतिचारों का मूल्यांकन किया गया है। ये गुणवत व शिक्षाव्रत आधुनिक दृष्टि से एक आदर्श नागरिक में नैतिक अधिकारों व कर्तव्यों की विवेचना करने वाले व्रत हैं। इन व्रतों का पूर्णरूपेण पालन करने से श्रावक केवल आत्मसाक्षात्कार का अधिकारी ही नहीं होता अपितु वह देश का आदर्श नागरिक भी बन जाता है। प्रसंगवश यहीं पर श्रावकाचार से सम्बन्धित अन्य व्रतों का भी मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है । ग्यारह प्रतिमाएँ आत्मसाधना के महल पर आरूढ़ होने के लिए ग्यारह सीढ़ियाँ हैं। हालांकि उपासकदशांग में इनका मात्र संकेत है परन्तु टीकाकार ने इनका विवेचन किया है । साथ ही षट्कर्म, षट्-आवश्यक, चार विश्राम, दस धर्म और बारह भावनाएँ भी श्रावक आचार में मानी जाती हैं, इन सब का उल्लेख प्रस्तुत अध्याय में किया गया है। ___षष्ठ अध्याय उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति के विभिन्न तथ्यों का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इस ग्रन्थ में जिन दस श्रावकों का वर्णन है उनमें आर्य-अनार्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय, गाथापति, कुम्भकार, आदि जातियों के उल्लेख प्राप्त हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि चार वर्णों और चार जातियों का जो विभाजन भारतीय साहित्य में उपलब्ध होता है वह उपासकदशांगसूत्र के समय उतना प्रचलित नहीं था । पारिवारिक जीवन में संयुक्त परिवार को विशेष महत्त्व प्राप्त था। परिवार का मुखिया ही कुटुम्ब का संचालक होता था। यद्यपि दस श्रावकों के जीवन का जो वर्णन है वह अत्यन्त समृद्धि का सूचक है, किन्तु समाज में मध्यम और निम्नवर्ग का भी अस्तित्व रहा होगा, इसको अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि व पश-पालन था इसके भी विभिन्न संदर्भ इस ग्रन्थ में उपलब्ध हैं। व्यापार और वाणिज्य द्वारा भी आर्थिक जीवन को समृद्ध बनाया जाता था। देशी-विदेशी दोनों प्रकार के व्यापार उस समय प्रचलित थे। ग्रन्थ के वर्णन से ऐसा ज्ञात होता है कि लोगों का जीवन समृद्धि और आमोद-प्रमोद से युक्त था । इस अध्याय के अन्त में धार्मिक जीवन और ग्रन्थ में उपलब्ध भौगोलिक स्थानों का विवरण भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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