Book Title: Terapanth me Sanskrut ka Vikas Author(s): Vimalmuni Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 3
________________ तेरापंथ में संस्कृत का विकास 441 ......................................................... साकार होने के पूर्व ही निर्दय काल उन्हें उठाकर ले गया। आचार्य कालगणी ने अपने स्वप्न को मूर्तिमान् करने का दायित्व अपने उत्तराधिकारी आचार्य श्री तुलसी को सौंपा और अन्तिम शिक्षा देते हुए उन्हें इस ओर विशेष ध्यान देने को कहा। आचार्य श्री तुलसी ने जब शासन भार संभाला तब वे सिर्फ 22 वर्ष के थे। फिर भी उन्होंने अपनी कार्यजा शक्ति से सारे संघ को प्रभावित किया / उन्होंने साधुओं में संस्कृत-विकास के साथ-साथ साध्वियों के संस्कृत-विकास की ओर भी विशेष ध्यान दिया और अपना समय लगाया। साधु-साध्वियों के शैक्षणिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए एक सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम भी निर्धारित किया गया था। जिसकी अन्तिम योग्यता एम० ए० के समकक्ष थी। प्रतिवर्ष उसकी परीक्षाएँ भी होती थीं। उनमें उत्तीर्ण होकर अनेक साधु-साध्वियों ने विशेष योग्यता प्राप्त की। वर्तमान में यह अध्ययनक्रम बन्द है। इसके स्थान पर जैन विश्व भारती के शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का अध्ययन कराया जाता है। आचार्य श्री तुलसी के शासनकाल में साधु-साध्वियों के शैक्षणिक विकास में विशेष गति हुई। वर्तमान में अनेक साधु-साध्वियां संस्कृत भाषा में धारा प्रवाह बोलने में समर्थ हैं / संस्कृत-लेखन में भी उनकी लेखनी अबाध-रूप से चलती है। आचार्य प्रवर तथा आचार्य महाप्रज्ञ के अतिरिक्त कई मुनियों की संस्कृत भाषा में रचित कृतियाँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं / उनका विवरण इस प्रकार है१. आचार्य तुलसी द्वारा रचित-भिक्षु न्याय कणिका, मनोऽनुशासनम्, जैन सिद्धान्त दीपिका, पंचसूत्रम्, शिक्षाषण्णवति तथा कर्त्तव्य-षट् त्रिशिका / 2. युवाचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित-अश्रुवीणा, मुकुलम् / 3. मुनि श्री चंदनमल जी द्वारा रचित-ज्योतिःस्फुलिंगम्, अनुभव शतकम्, अभिनिष्क्रमणम्, आर्जुनमालाकारम्, प्रभव-प्रबोध, वर्धमान शिक्षा सप्तति, संवर-सुधा इत्यादि / 4. मुनि श्री सोहनलाल जी द्वारा रचित-देवगुरुधर्मस्तोत्र / 5. मुनि श्री बुद्धमल जी द्वारा रचित-उत्तिष्ठ जागृत / 6. मुनि श्री धनराजजी (लाडनूं) द्वारा रचित-भावभास्करकाव्य / ऊपर में उन्हीं कृतियों का उल्लेख किया गया है जो प्रकाशित हैं। इसके सिवाय अनेक साधु-साध्यियों की रचनाएँ अप्रकाशित भी हैं। लेखन के साथ-साथ कई साधु-साध्वियां संस्कृत में आशु कविता में करने में भी सक्षम हैं। अस्तु, तेरापंथ धर्मसंघ के साधु-साध्वियाँ शिक्षा, साधना और सेवा के क्षेत्र में और अधिक कीर्तिमान स्थापित करते हुए शासन की सौरभ को सर्वत्र प्रसारित करें। इसी शुभाशंसा के साथ ......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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