Book Title: Terapanth Pavas Pravas
Author(s): Navratnamalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ आठ निवासी लिखमीचंदजी डूंगरवाल द्वारा ऐसा प्रयास किया गया था । उन्होंने एक पुस्तक 'चातुर्मास - विवरण' भी प्रकाशित की थी, परन्तु उसमें सं० १९५५ से २०१२ तक के चातुर्मासों की ही सूची थी । प्रत्येक क्षेत्र के श्रावक -समाज की मांग रहती थी कि प्रारम्भ से अब तक हमारे गांव में किन-किन के चातुम हुए हैं । उसकी पूर्ति के लिए ही पुनः प्रयत्न किया गया है। सं० १९५५ से अब तक के चातुर्मासों की तालिका साधुओं द्वारा लिखित पत्रों में संग्रहीत है, परन्तु सं० १९५५ से पूर्व के चातुर्मास व्यवस्थित रूप में लिखे हुये नहीं मिलते हैं । उनका संग्रह प्राचीन व्याख्यान, गीतिकाएं तथा श्रावकों द्वारा लिखित पत्रों के माध्यम से 'शासन - समुद्र' में किया गया है और उसके आधार से इस कृति में संकलित किये गये हैं । चातुर्मासों के अतिरिक्त अन्य अपेक्षित तथ्यों को भी इसके साथ जोड़ा गया है, जो इस प्रकार है : १. तेरापंथ के आचार्यों एवं साधु-साध्वियों के चातुर्मासों का विवरण वि० सं० १८१७ से २०४२ तक अकार आदि क्षेत्रानुक्रम से । २. भारत के १५ प्रांत तथा नेपाल में तेरापंथ के पावस- प्रवास | ३. तेरापंथ के लगभग ४२५ क्षेत्रों में चातुर्मास । ४. आचार्यों के वर्षानुक्रम व क्षेत्रानुक्रम से चातुर्मास । ५. आचार्यों के वर्षानुक्रम व क्षेत्रानुक्रम से मर्यादा - महोत्सव | ६. आचार्यों की संक्षिप्त जीवन-झांकी । ७. साध्वी प्रमुखाओं की संक्षिप्त जीवन - झांकी । ८. दीक्षा दर्पण तथा दीक्षा : सिंहावलोकन | ६. अकार आदि क्रम से अग्रगण्य साधु-साध्वियों की सूची । प्रकाशन में क्वचिद् त्रुटियां रहीं, उनके प्रमार्जन के लिये 'नई वृद्धि' भूल सुधार' पत्र संलग्न कर ध्यान में आये तो सूचित करने ( जो मूलत: छुट गये), 'मुद्रित भूल से' तथा दिया गया है। फिर भी कोई भूल पाठकों के पर उसका संशोधन कर दिया जायेगा । कई क्षेत्रों कुछ चातुर्मास प्रमाणित रूप में प्राप्त न होने के कारण इस पुस्तक में संकलित नहीं हुए हैं । कई क्षेत्रों के कुछ चातुर्मास अन्वेषण करने से और भी मिल सकते हैं। इसके लिए प्रयत्न चालू है । यथार्थ जानकारी मिलने पर उनका संकलन कर लिया जायेगा । समग्र चातुर्मासों का व्यवस्थित रूप में संकलन करना अत्यंत श्रमसाध्य कार्य था परन्तु श्रद्धेय आचार्यश्री तुलसी एवं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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