Book Title: Tattvarthadhigama Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijaydarshansuri, Yashovijay
Publisher: Motiji Kapurchand Tarachand
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२५ बिरुदं कारयां प्रदतं बुधैः " आ पोताना कथनथी ज समर्थन थाय छे.
एमनी न्यायविशारदता एमने जंपीने बेसवा दे एम नहोती. ए विशारदताए एकसो नवीन ग्रन्थनी रचना करवा एमने प्रेर्या. सो ग्रंथो रचीने तेओए "न्यायाचार्य" नुं विरुद मेळ, आवातनुं समर्थन " न्यायाचार्यपदं ततः कृतशतग्रन्थस्य यस्थार्पितम् " आ वाक्यथी तेओश्रीए ज करेल छे, एमनी अद्वितीय विद्वत्ताए एमने पदशास्त्रषेचा तरीके प्रसिद्धि आपी.
जैनदर्शन अने जैन न्यायमां तेओ पारंगत थया एमां तो पूछधुं ज शुं ? सम्मतितर्क अने स्याद्वादरत्नाकरनुं तो तेओ पान करी गया होय एम लागे !
काशीमांत्रण वर्ष एकचित्ते निरंतर पूर्ण परिश्रमपूर्वक अभ्यास कर्यो तो पण जाणे के अभ्यास अधूरो रह्यो होय एम जाणी आग्रामां फरी अभ्यास करवा मंड्या, अने चार वर्ष त्यां अभ्यासमां विताव्यां, षड्दर्शननो अभ्यास पूर्ण कर्यो. राजनगर आवीने अढार अवधान कर्या. औरंगझेबना सूवा महोब्बतखान एमनी अनधानशक्तिना दर्शन करवा आव्या. एमनी स्मरणशक्ति सौने मुग्ध कर्या, राजनगरथी काशी जतां पहेलां अष्टावधान कर्या हता, पाछा आवीने अढार अवधान करीने अभ्यासवेळा पण अवधानशक्ति ने खीलनवानुं चालु राखेलुं तेम सिद्ध कर्यु. गच्छनायक श्री विजयप्रभसूरिजीए उपाध्यायना ( वाचकना ) विरुदथी विभूषित कर्या अने योग्यनुं योग्य सन्मान कर्यु.
उपाध्यायजीए करेल सरस्वती - आराधना
ज्ञाननी आराधना ग्रन्थो वांची विचारीने मात्र करी एम नहि, परंतु सरस्वती देवीनी आराधना " ऍकारजापंवरमाध्यं कवित्वविश्व - वाञ्छासुरद्रुमुपगङ्गमं भङ्गरङ्गम् " आ पूर्वार्द्ध पंचसिद्ध 'ऐं'काररूपवीजपूर्वक सरस्वती मंत्रना जापथी पण करी. परिणामे वाग्देवी प्रसन्नता एमने वरी.
पू. उपाध्यायजीनुं पांडित्य सर्वतोमुखी हतुं विद्वद्भोग्य साहित्य रचवानी साथै ज बाळकोने पण सरळताथी ज्ञान मळे एवं साहित्य एमणे रच्युं गीर्वाणगिरामां ग्रन्थो रच्या अने गुजराती भाषामा पण रच्या, अर्धमागधी भाषामां पण एमणे साहित्य रच्युं न्यायग्रन्थो अनेक लख्या तो आध्यात्मिक ग्रन्थो ओछां नथी लख्या व्याकरण, साहित्य, अलंकार, छंद, काव्य, सिद्धा., आगम, नय, प्रमाण, सप्तभंगी, अध्यात्म, योग, स्याद्वाद, आचारधर्म, कर्मवाद विगेरे अनेक बाबतो विषे एमणे वणुं धणुं लख्युं छे. तच्चज्ञाननो तो तेओश्रीए वरसाद वरसाव्यो छे. तेमनुं साहित्य जेटलुं विशाळ छे एटलुं ज आकर्षक छे.
पू. श्री उपाध्यायजीनुं विहारक्षेत्र पण विस्तृत हतुं सौराष्ट्र, गुजरात, मारवाड, माळवा, आग्रा, बनारस, विगेरे स्थळोए तेओ विहर्या हता, छेत्रटनुं
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