Book Title: Tathakathit Harivanshchariyam ki Vimal Kartuta Ek Prashna
Author(s): Gulabchandra Chaudhary
Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ तथाकथित हरिवंसचरियंकी विमलसूरिकर्तृता : एक प्रश्न (स्व०) डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी इस शताब्दीके प्रारम्भमें विमलसूरि कृत प्राकृत पौराणिक महाकाव्य पउमचरियंका सम्पादन प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् हर्मन याकोवीने किया था जिसका प्रकाशन सन् १९१४ में भावनगरसे हुआ था। तबसे लगभग २८ वर्षों के बाद उक्त कृति और रविषेणके संस्कृत पद्मचरित (पद्मपुराण) के बीच तुलनात्मक अध्ययनके फल प्रकाशमें आये। सन् १९४२ की अनेकान्त पत्रिका, वर्ष ५ के अंक १-२ में स्व० पं० नाथूराम प्रेमीने "पदमचरितं और पउमचरियं" लेख तथा उक्त वर्ष के १०-११वें अंकोंमें पं० परमानन्द शास्त्रीने 'पउमचरियंका अन्तःपरीक्षण' नामक लेख लिखे । प्रेमीजीने अपने उक्त लेखको सन् १९४२ में प्रकाशित अपनी कृति 'जैन साहित्य और इतिहास' में भी प्रकाशित किया। इन लेखोंमें पउमचरियं और पद्मचरितके बीच साम्य और वैषम्यपर ऊहापोह किया गया है। परन्तु विमलसूरिने कोई और ग्रन्थ लिखे थे उसपर प्रकाश नहीं डाला गया। "जैन साहित्य और इतिहास के प्रथम संस्करण (१९४२)में एक स्थल (पृ० ५२०) पर प्रेमीजीने प्रश्नोत्तरमालिकाके कर्ता किसी विमलसूरिके होनेकी सम्भावनाका खण्डन किया है पर उसी ग्रन्थके परिशिष्टमें दो छोटे पैराग्राफों द्वारा उद्योतन सूरि कृत तब अप्रकाशित कृति "कुवलयमाला" (शक सं० ७००) की प्रस्तावना गत एक गाथा बुहयणसहस्सदइयं हरिवंसुप्पत्तिकारयं पढमं । वंदामि वंदियं पि हु हरिवंसं चेव विमलपयं ॥ के आधारसे (उस गाथाके पाठकी बिना परीक्षा किये और उस गाथाकी स्थिति और सन्दर्भका बिना विचार किये) सम्भावना की कि बिमलसूरि कृत "हरिवंश चरियं" होना चाहिए और लिखा कि "विमलसुरिका वह हरिवंश अभी तक कहीं प्राप्त नहीं हुआ है, इसके प्राप्त होनेपर जिनसेनके हरिवंशका मूल क्या है इसपर कुछ प्रकाश पड़नेकी सम्भावना है और सम्भव है पद्मपुराणके समान वह भी विमलसूरिके हरिवंशकी छाया लेकर बनाया गया हो"। उस समय वयोवृद्ध साहित्यिक प्रेमीजीकी उक्त सम्भावनाको किसीने चुनौती नहीं दी, बल्कि उनके अनुसरण और समर्थनमें ही सन् १९६६ तक कलमें चलती रहीं और सम्भवतः अब भी चल रही हों। डॉ० ज्योतिप्रसाद जैनने सन् १९५७ से पूर्व लिखे अपने एक लेख-"विमलार्य और पउमचरियं"१ में और सम्भवतः उससे पूर्व लिखे अपने शोध प्रबन्ध-Studies in the Jain sources of the History of Ancient India' में उक्त सम्भावनाकी पुष्टिके साथ कुछ वकालत की है। उनका कहना है कि "कुवलयमाला"की गाथाके अनुसार विमलार्य न केवल अपने विमलांक काव्य (पउमचरियं)के रचयिता थे, वरन् सर्वप्रथम हरिवंश पुराणके भी रचयिता थे। उक्त पउमचरियंकी प्रशस्तिके "सोऊण पुन्वगए नारायणसीरिचरियाई" शब्दोंसे भी यही ध्वनित होता है कि विमलार्यने श्री नारायणके चरित (अर्थात कृष्ण १. श्री विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ पृ० ४३७-४५१ । १७८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4