Book Title: Syadwad aur Vadibhasinh
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf

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Page 23
________________ २. अकलङ्कदेव न्यायविनिश्चयादि ग्रन्थों का भी स्याद्वादसिद्धिपर असर है जिसके तीन तुलनात्मक नमूने इस प्रकार हैं (१) असिद्धमिधर्मत्वेऽप्यन्यथानुपत्तिमान् । हेतुरेव यथा सन्ति प्रमाणानीष्टसाधनात् ॥ पक्षधर्मत्व-वैकल्येऽप्यन्यथानुपपत्तिमान् ॥ हेतुरेव यथा सन्ति प्रमाणानीष्टसाधनात् । - न्यायविनि० का० १७६ । (२) समवायस्य वृक्षोऽत्र शाखास्वित्यादिसाधनैः ॥ अनन्यसाधनैः सिद्धिरहो लोकोत्तरा स्थितिः ॥ इह शाखासु वृक्षोऽयमिति सम्बन्धपूर्विका । बुद्धिरिहेदबुद्धित्वात्कुण्डे दधीति बुद्धिवत् ॥ - स्या० ५-८ । (३) अप्रमत्ता विवक्षेयं अन्यथा नियमात्ययात् । इष्टं सत्यं हितं वक्तुमिच्छा दोषवती कथम् ॥ सार्वज्ञ सहजेच्छा तु विरागेऽप्यस्ति, साहिन । रागाद्युपहत्ता तस्माद्भवेद्वक्तैव सर्ववित् ॥ - स्या०-४-८७,८८ । Jain Education International - न्यायवि० का० १०३, १०४ - स्या० ८-१० | अतः वादीभसिंह अकलङ्कदेवके अर्थात् विक्रमकी सातवीं शताब्दी के उत्तरवर्ती विद्वान् हैं । ३. प्रस्तुत स्याद्वादसिद्धिके छठे प्रकरणकी १९वीं कारिकामें भट्ट और प्रभाकरका नामोल्लेख करके उनके अभिमत भावना नियोगरूप वेदवाक्यार्थका निर्देश किया गया है। इसके अलावा, कुमारिलभट्ट के मीमांसाश्लोकवार्तिकसे कई कारिकाएँ भी उद्धृत करके उनकी आलोचना की गई है। कुमारिलभट्ट और प्रभाकर समकालीन विद्वान् हैं तथा ईसाकी सातवीं शताब्दी उनका समय माना जाता है, अत: वादीभसिंह इनके उत्तरवर्ती हैं । - — न्यायवि० का० ३५६ । ४. बौद्ध विद्वान् शङ्करानन्दकी अपोहसिद्धि और प्रतिबन्धसिद्धिकी आलोचना स्याद्वादसिद्धिके तीसरेचौथे प्रकरणों में की गई मालूम होती हैं । शङ्करानन्दका समय राहुल सांकृत्यायनने ई० ८१० निर्धारित किया है । " शङ्करानन्दके उत्तरकालीन अन्य विद्वान्‌की आलोचना अथवा विचार स्याद्वादसिद्धि में पाया जाता हो, ऐसा नहीं जान पड़ता । अतः वादीभसिंहके समयकी पूर्वावधि शङ्करानन्दका समय जानना चाहिये । अर्थात् ईसाकी ८वीं शती इनकी पूर्वावधि मानने में कोई बाधा नहीं है । ३०९ - अब उत्तरावधिके साधक प्रमाण दिये जाते हैं १. तामिल - साहित्य के विद्वान् पं० स्वामिनाथय्या और श्री कुप्पूस्वामी शास्त्रीने अनेक प्रमाणपूर्वक यह सिद्ध किया है कि तामिल भाषा में रचित तिरुत्तक्कदेव कृत 'जीवकचिन्तामणि' ग्रन्थ क्षत्रचूडामणि और गद्य चिन्तामणिकी छाया लेकर रचा गया है और जीवकचिन्तामणिका उल्लेख सर्वप्रथम तामिलभाषाके पेरियपुराणमें मिलता है जिसे चोल- नरेश कुलोत्तुङ्गके अनुरोधसे शेक्किलार नामक विद्वान् ने रचा माना जाता १. देखो, 'वादन्यायका परिशिष्ट A । २. देखो, जैनसाहित्य और इतिहास । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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