Book Title: Syadvada par Kuch Akshep aur unka Parihar
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Z_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf

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Page 6
________________ 32 आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ गई उसी प्रकार बौद्ध दर्शन में विभज्यवाद के नाम पर इसी प्रकार का अंकुर प्रस्फुटित हुश्रा। किन्तु उचित मात्रा में पानी और हवा न मिलने के कारण वह मुरझा गया और अन्त में नष्ट हो गया। स्यावाद को समय समय पर उपयुक्त सामग्री मिलती रही जिस से वह आज दिन तक बराबर बढ़ता रहा। भेदाभेदवाद, सदसद्वाद, नित्यानित्यवाद, निर्वचनीयानिर्वचनीयवाद, एकानेकवाद, सदसत्कार्यवाद आदि जितने भी दार्शनिक वाद हैं, सब का आधार स्याद्वाद है। जैन दर्शन के प्राचार्यों ने इस सिद्धान्त की स्थापना का युक्तिसंगत प्रयत्न किया। प्रागमों में भी इसका काफी विकास दिखाई देता है। ___जैन दर्शन में स्याद्वाद का इतना अधिक महत्त्व है कि आज स्याद्वाद जैन दर्शन का पर्याय बन गया है। जैन दर्शन का अर्थ स्याद्वाद के रूप में लिया जाता है। जहां जैन दर्शन का नाम आता है, अन्य सिद्धान्त एक ओर रह जाते हैं और स्याद्वाद या अनेकान्तवाद याद आजाता है। वास्तव में स्याद्वाद जैन दर्शन का प्राण है। जैन श्राचार्यों के सारे दार्शनिक चिन्तन का आधार स्याद्वाद है। CIAARI . HUDAI N F.. PERATIENTIA 3 HADLINE . Media Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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