Book Title: Swapna Manogivyan aur Manav Astittva Author(s): Virendra Sinha Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 2
________________ लिए प्रतीकों या बिम्बों का द्वितीय स्थान है क्योंकि उसके मतानुसार स्वप्न बिम्ब किसी मानसिक जटिलता या दमित इच्छाओं का गुप्त अभिव्यक्तीकरण है। युंग ने इस मत को स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसके लिए "बिम्ब' मानसिक क्रियाओं का गुणक है जिसकी महत्ता उसके मनोविश्लेषणात्मक स्वरूप पर आश्रित ___ युंग आदि ने इस मनोविश्लेषणात्मकपद्धति के द्वारा सामान्यतः मनस् (Psyche) के प्रभावशाली 'रूपाकारों' का संकेत किया है जिसे वह स्वन के आद्यरूप (Archetype) की संज्ञा देता है। ये आद्यरूप मूलतः मनस्-तत्व के वे रूप हैं जिनका अभिव्यक्तीकरण भिन्न बिम्बों द्वारा होता है। ये बिम्ब या आद्यरूप इस प्रकार संयोजित होते हैं कि इन्हें उसी समय पहचाना जा सकता है जब वे अपना प्रभाव प्रकट करते हैं। यही कारण है कि आद्यरूपों का तत्व मूलतः रूपकों के द्वारा प्रकट होता है। इन रूपकों का ही विश्लेषण स्वप्न-आद्यरूपों के सही अर्थ को व्यक्त करता है या कर सकने में समर्थ होता है। ये आद्यरूप सामूहिक अचेतन से गहरे सम्बंधित होने के कारण जातीय-मनस् के अभिन्न अंग भी होते हैं जैसे 'महामाता' का बिम्ब, रति-काम का बिम्ब, हीरो या नायक (राम-कृष्ण) का बिम्ब आदि। ये आद्यरूप जातीय मनस् में बार-बार घटित होते हैं और युगानुसार नए अर्थ-संदर्भो को प्रकट करते हैं। साहित्य, कला, दर्शन और धर्म के क्षेत्रों में इन आद्यरूपों का बार-बार नए संदर्भो में प्रयोग होता रहा है। यंग का तो यहाँ तक मानना है कि शिश के मनस में ये स्वप्न आद्यरूप प्राप्त होते हैं जो किसी न किसी रूप में मानवीय विकास के आदितम रूप को (शिशु) संकेतित करते हैं। ये आदितम आद्यरूप आज भी हमारे 'मनस' के अभिन्न अंग हैं जो बीज रूप में हममें अब भी वर्तमान हैं। यही कारण है कि रचनाकार चाहे वह किसी भी 'वाद' या 'विचारधारा' का पक्षधर क्यों न हो, वह किसी न किसी स्तर पर इन 'आद्यरूपों' अवश्य है। यंग इन आद्यरूपों को बाल्यकाल की विचार-प्रक्रिया का रूप मानता है और इन्हें आदिम मानसिकता से जोड़ता है जो मानव के अस्तित्व से गहरा सम्बंधित है। दूसरी ओर युंग मिथकों को अचेतन फैन्टेसी और विचार-प्रक्रियाओं से जोड़ता है जो बाल्यकाल के विचार और फैन्टोसी प्रक्रमों से भित्र है क्योंकि मिथक एक विश्व प्रारूप को प्रस्तुत करता है जो हमारी तर्कीय वस्तुगत दृष्टि को भी प्रक्षेपित करता है। ५ मिथक के प्रति युग का मत, मेरी दृष्टि से मात्र स्वप्न एवं यौन बिम्बों तक सीमित न होकर एक विश्व-दृष्टि के परिचय के साथ-साथ सृजन संहार और मानवीय सरोकारों को भी व्यक्त करता है। ६ इस प्रकार मिथकीय आद्यरूपों का एक गहरा सम्बंध जातीय 'मनस' और अस्मिता से होता है। स्वप्न के उपर्युक्त महत्व को ध्यान में रखकर एक तथ्य यह स्पष्ट होता है कि स्वप्न अनेक प्रकार के होते हैं जैसे दिव्य स्वप्न, यौन स्वप्न, भविष्य संकेतक स्वप्न चेतन विचार-प्रक्रिया के स्वप्न, नैतिक स्वप्न तथा तर्कहीन मूर्खता से भरे स्वप्न। यहाँ पर इन सब पर विचार करना संभव नहीं है, लेकिन इन स्वप्न प्रकारों के अध्ययन से कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष मनोवैज्ञानिकों एवं चिंतकों ने निकाले हैं जो मानवीय 'मनस' के रहस्य को और उसके सरोकारों को व्यक्त करते हैं। पहला निष्कर्ष लियोनार्ड ने यह निकाला कि ३. ४. द हाऊस डैट फ्रॉयड बिल्ट, जेसट्राव पृ. ९७। द साइकोलॉजी ऑफ दि चाइल्ड आरिकीटाइप, युग पृ २६०। कॉम्पलेक्स आरिकीटाइप सिम्बल इन सी.जी. युंग राल्फ मैनहीम, पृ. १३७ मिथक- दर्शन का विकास, वीरेन्द्र सिंह पृ. २०-२५। (१८२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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