Book Title: Swanubhava
Author(s): Babulal Jain
Publisher: Babulal Jain

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Page 52
________________ भगवान महावीर की स्वतंत्रता की घोषणा * हरेक जीवात्मा शक्ति रूप परमात्मा है। वह अपनी शक्ति को क्रम से व्यक्त करता हुआ परमात्मा बन सकता है। यह महान स्वतंत्रता की घोषणा भगवान महावीर ने की है। चारों गतियों के जीव जो मन सहित हैं, चाहे वह चण्डाल भी क्यों न हो, पशु-पक्षी भी क्यों न हो, सम्यकदर्शन प्राप्त कर सकता है। सम्यक्-दर्शन प्राप्त करने का अर्थ मोक्षमार्गी हो सकता है। धर्म की परिभाषा जो भगवान महावीर ने की है वह आज तक किसी ने नहीं की। उन्होनें यह नहीं कहा कि मुझे पूजना धर्म है अथवा यह क्रिया करना धर्म है, परन्तु उन्होंने कहा कि 'वस्तु स्वभावो धम्मो" जो चैतन्य वस्तु का स्वभाव है, वही उसका धर्म है। अग्नि का स्वभाव उष्णता है, चीनी का मिट्ठापना, इसी प्रकार आत्मा का स्वभाव है वीतरागता, वही जीव का धर्म है। उन्होंने हमें णमोकार मंत्र दिया, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष के नाम का स्मरण करने को नहीं कहा परन्तु यह कहा कि “जिसने विकारों का (राग-होप) का नाश किया उसको नमस्कार है, जिसने स्वभाव को प्राप्त किया उसको नमस्कार है, जो विकारों के नाश करने में और स्वभाव (वीतरागता) को प्राप्त करने में लगे हैं, उन साधुओं को नमस्कार है। यह अद्भुत मंत्र है। * उन्होंने अहिंसा की परिभाषा बताई, जो सार्वभौम है, अर्थात् अप्रादुर्भाव-खुल रागादिनां भवत्यहिंसेति “अर्थात् अपने अन्दर रागादि भावों का न होना ही अहिंसा है, अर्थात् रागादि भावों का होना ही हिंसा है चाहे बाहर में जीव मरे या न मरे, ऐसी परिभाषा आज तक किसी ने नहीं बताई।

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