Book Title: Swantrata Sangram me Mevad ke Jainiyo ka Yogadan Author(s): Bhanvar Surana Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 1
________________ ---0-0-0-0--0--0--0--0--0--0--0----0--0--0-0-0--2 0 डा० भंवर सुराणा देश की सांस्कतिक, साहित्यिक एवं औद्योगिक [प्रसिद्ध पत्रकार प्रवृत्तियों में अग्रणी रहने वाले मेवाड़ी जैन, स्वतंत्रता संग्राम में भी पीछे नहीं रहे हैं। देश को पराधीनता की जंजीरों से मुक्त करने में मेवाड़ के जैनों के योगदान की एक संक्षिप्त झाँकी यहां स्वतंत्रता संग्राम में मेवाड़ प्रतित है।" के जैनियों का योगदान 000000000000 ०००००००००००० کہ0-مسن مممممممممممممممم SESSA OTOS AUTTAMITTA गरीबी की अत्यन्त निम्नस्तरीय सीमा-रेखा को स्पर्श करते हुए अशिक्षित, कूपमण्डूक, तिहरी गुलामी से त्रस्त बेगार और कारसरकार में मुफ्त पकड़े जाने की अजीब जिन्दगी के बीच जीते भीलों को एक नया जीवन मिला, श्री मोतीलाल तेजावत के रूप में । ठाकुरों के अन्याय और मनमानी के बीभत्स दृश्यों ने तेजावतजी को उनके विरुद्ध उठ खड़े होने को शक्ति, साहस और सामर्थ्य प्रदान किया । उन्होंने जुल्मों के प्रतिरोध में ठिकाने की नौकरी छोड़ दी और 'एकी'-एकता संगठन का कार्य प्रारम्भ कर किसानों एवं गरीब भीलों में जन-जागरण का आन्दोलन आरम्भ किया। मातृकुडियाँ का विशाल किसान-सम्मेलन, महाराणा फतहसिंह को ज्ञापन और किसानों को माँगों का निपटारा उनकी संगठन-क्षमता का अपूर्व संयोजन था । अनेक बार ठाकुरों और उनके कारिन्दों ने उन पर प्राणघातक हमले किये । सिरोही, दांता, पालनपुर, ईडर, विजयनगर राज्यों में तेजावतजी ही एकछत्र नेता थे । विजयनगर राज्य के नीमड़ा ग्राम में बातचीत करते-करते राज्य की सेना ने षड्यन्त्रपूर्वक अचानक गोलियां चलाकर १२०० लोगों को मार डाला। स्वयं तेजावतजी गोली व छरों से घायल हो गये। उनके रक्षक भीलों ने उनको घायल अवस्था में राज्य की कोप दृष्टि से बचाकर उन्हें गुप्तवास में रखा । तेजावतजी से इन राज्यों के शासक कितना डरते थे, यह इस बात से ज्ञात होता है कि एक अन्य निर्दोष व्यक्ति का सिर काटकर प्रचार किया गया कि तेजावतजी मार डाले गये, ताकि आन्दोलन कमजोर हो जाए ! उनकी खोज में सैकड़ों गाँव के गांव जला दिये गये। पुलिस और फौज उनकी खोज में लगी रहती थी, पर वे हाथ नहीं आये। गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने आत्म-समर्पण कर दिया। तब १९२६ से १९३६ तक जेल में और उसके बाद नजरबन्दी में दिन गुजारते तेजावतजी १९४७ तक कई बार जेलों की यात्रा कर आये । जोधपुर में प्रजामण्डल और देशी राज्य लोक-परिषद् की अलख जगाने वाले श्री आनन्दराज सुराणा पुलिस के चंगुल से बचने हेतु उदयपुर में फरारी अवस्था में काफी समय तक छिपकर रहे। श्री शोभालाल गुप्त (काकाजी) 'तरुण राजस्थान के सम्पादक ने राजद्रोही के रूप में कई बार सजा काटी। गांधीजी के आश्रम से सम्बद्ध काकाजी को अजमेर में राजद्रोहात्मक भाषण देने पर जेल भेजा गया । १६४२ के आन्दोलन में भी उनको जेल जाना पड़ा। उनकी पत्नी श्रीमती विजयादेवी भी आन्दोलनों में जेल जाती रहीं। मेवाड़ प्रजामंडल के अध्यक्ष श्री बलवन्तसिंह मेहता दीवान परिवार में बागी बने । उन्होंने लाहौर कराँची में कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लिया और नौजवान भारत सभा, अनुशीलन समिति आदि से सम्बद्ध रहे। प्रजामंडल, कर-विरोधी आन्दोलनों में अनेक बार श्री मेहता गिरफ्तार हुए और जेल काटी। KAR १ तेजावतजी के सम्बन्ध में एक स्वतन्त्र लेख इसी खण्ड में प्रकाशित किया गया है-'एक जैन भील नेता श्री मोतीलाल तेजावत' । लेखक हैं-श्री शोभालाल गुप्त । MAN - ::Saxcit-/- SmitenionlemergPage Navigation
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