Book Title: Suvarnabhumi me Kalakacharya Author(s): Umakant P Shah Publisher: Z_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf View full book textPage 1
________________ सुवर्णभूमि में कालकाचार्य डॉ. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, एम्. ए., पीएस्. डी. श्री. सचदास गणि क्षमाश्रमणकृत वृहत्कल्पभाष्य' (विभाग १, पृ. ७३-७४) में निम्नलिखित माथा है: सागरियमप्पाहण, सुवन्न सुयसिस्स खंसलक्खेण। कहणा सिस्सागमणं, धूलीपुजोवमाणं च ॥२३६॥ इस गाथा की टीका में श्रीमलयगिरि (वि० सं० १२०० अासपास) ने कालकाचार्य के सुवर्णभूमि में जाने की हकीकत विस्तार से बतलाई है जिसका सारांश यहाँ दिया जाता है। उज्जयिनी नगरी में सूत्रार्थ के ज्ञाता आर्य कालक नाम के प्राचार्य बड़े परिवार के साथ विचरते थे। इन्हीं श्रार्य कालक का प्रशिष्य, सूत्रार्थ को जाननेवाला सागर (संज्ञक) श्रमण सवर्णभूमि में विहार क था। आर्य कालक ने सोचा, मेरे ये शिष्य जब अनुयोग को सुनते नहाँ तब मैं कैसे इनके बीच में स्थिर रह सकूँ ? इससे तो यह अच्छा होगा कि मैं वहाँ अऊँ जहाँ अनुयोग का प्रचार कर सकूँ, और मेरे थे शिष्य भी पिछे से लज्जित हो कर सोच समझ पाएंगे। ऐसा खयाल कर के उन्होंने शय्यातर को कहा : मैं किसी तरह (अज्ञात रह कर) अन्यत्र जाऊँ। जब मेरे शिष्य लोग मेरे गमन को सुनेंगे तब तुम से प्रा करेंगे। मयर, तुम इनको कहना नहीं और जब ज्यादा तंग करें तब तिरस्कारपूर्वक बसाना कि (तुम लोगों से निर्वेद पा कर) सुवर्णभूमि में सागर (श्रमण) की ओर गये हैं। ऐसा शय्यातर को समझाकर रात्रि को जब सब सोये हुए थे तब वे (विहार कर के) सुवर्णभूमि को गये। वहाँ आ कर उन्होंने स्वयं 'खेत' मतलब कि वृद्ध (साधु) हैं ऐसा बोल कर सागर के गाछ में प्रवेश पाया। तब यह वृद्ध (अति वृद्ध-मतलब कि अब जीर्ण और असमर्थ-नाकामीयाब होते जाते) हैं ऐसे खयाल से सागर श्राचार्य ने उनका अभ्युत्थान श्रादि से सम्मान नहीं किया। फिर अत्य-पौरुची (व्याख्यान) के समय पर (व्याख्यान के बाद) सागर ने उनसे कहा : हे वृद्ध ! आपको यह (मवचन) पसंद बाय? प्राचार्य कासक) बोले ! सायर बोला : अध अवश्य व्याख्यान को सुनते रहें। ऐसा कह कर गपचूर्वक सागर सुनाते रहे। अधसरे शिष्यलोग (उज्जैन में) प्रभात होने पर प्राचार्य को न देखकर सम्मान होमरसन हरते हुए शय्यासर को पूछने लगे मगर उसने कुछ बताया नहीं और बोला: जब श्राप लोगों को स्वयं प्राचार्य कहते नहीं सब मेरे को कैसे कहते? फिर अब शिष्यगण अातुर हो कर बहुत श्राग्रह करने लगा तब शग्यालर तिरस्कारपूर्वक बोला : आप लोगों से निर्वेद पा कर सुवर्णभूम्म में सागर श्रमण के पास चले गये हैं। फिर वे सब सुवर्णभूमि में जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में लोग पूछते कि यह कौनसे प्राचार्य विझर कर रहे हैं? तब वे बताते थे: सार्य कालक। अब इधर सुवर्णभूमि में लोगों ने बतलाया कि आर्य कालक नाम के बहुश्रुत श्राचार्य बहू परिवार सहित यहाँ अाने के खयाल से रास्ते में हैं। इस बात को सुनकर सागर ने अपने शिष्यों को कहा मेरे आर्य आ रहे हैं। मैं इनसे पदार्थों के विषय में प्रन्या करूँगा। __ थोड़े ही समय के बाद वे सिष्य श्रादये। वे पूछने लगे : क्या यहाँ पर प्राचार्य पधारे हैं ? उत्तर १. मुनि श्रीपुण्यषिजयजी-संपादित, "नियुक्ति-लवुभाष्य-वृत्त्युपेतं-वृहरकल्पसूत्रम्" विभाग १ से ६, प्रकाशक. श्री जैन आत्मानन्द सभा. भावनगर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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