Book Title: Sutrakritanga ka Varnya Vishay evam Vaishishtya Author(s): Ashok Kumar Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 5
________________ 1108 .... जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाड़क अष्टम अध्ययन 'वीरियं' (वीर्य) है। सूत्रकार ने अकर्मवीर्य-पण्डित वीर्य और कर्मवीर्य बलवीर्य ये दो प्रकार बताये हैं। अकर्मवीर्य में संयम की प्रधानता है। पण्डित वीर्य को मुक्ति का कारण बताया गया है। इन्द्रिय संयम पर बल देते हुए कहा है "अतिक्कमंति वायाए, मणसा वि ण पत्थए। सवओ संवुडे दंते, आयाण सुसमाहरे ।।" 8/21 महाव्रतों का वाणी से अतिक्रम न करे । भन से भी उनके अतिक्रम की इच्छा न करे। वह सब ओर से संवृत और टान्त होकर इन्द्रियों का संयम करे। नवम अध्ययन 'धम्म' (धर्म) है। इसमें भगवान महावीर द्वारा वताये गये धर्म का निरूपण है। नियुक्तिकार ने कुल धर्म, नगर धर्म, राष्ट्र धर्म, गण धर्म, संघ धर्म, पाखण्ड धर्म, श्रुत धर्म, चारित्र धर्म, गृहस्थ धर्म आदि अनेक रूपों में 'धर्म' शब्द का प्रयोग किया है। धर्म के मुख्य रूप से दो भेट हैंलौकिक धर्म और लोकोत्तर धर्म। इस अध्ययन में लोकोत्तर धर्म का निरूपण दशम अध्ययन 'समाही' (समाधि) है। समाधि का अर्थ हैसमाधान, तुष्टि अवरोध। इसमें भाव, श्रुत, दर्शन और आचार इन चार प्रकार की समाधियों का वर्णन किया गया है। एकादश अध्ययन का नाम 'मग्गे' (मार्ग) है। भगवान महावीर ने अपनी साधना-पद्धति को 'मार्ग' कहा है। समाधि के लिए साधक को ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तपोमार्ग का आचरण करना चाहिए- यह उपदेश दिया गया है। बारहवें अध्ययन का नाम 'समवसरण' है। समवसरण का अर्थ है-वाद-संगम। जहाँ अनेक दृष्टियों / दर्शनों का मिलन होता हैं. उसे समवसरण कहते हैं। इस अध्ययन में क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद और विनयवाद इन चारों वादों की कतिपय मान्यताओं की समालोचनः कर यथार्थ का निश्चय किया गया है। त्रयोदश अध्ययन का नाम 'यथातथ्य' है। इसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि मद रहित साधना करने वाला साधक हो सना विज्ञ और मोक्षगामी है। चौदहवें अध्ययन का नाम 'ग्रन्थ' है। ग्रन्थ का अर्थ है- अत्मा को बांधने वाला। ग्रन्थ दो प्रकार का है- द्रव्य और भाव ग्रन्थ। भाव ग्रन्थ के दो प्रकार है... १. प्रशस्त भाव ग्रन्थ जिसके अन्तर्गत ज्ञान . दर्शन और चारित्र है। २. अप्रशस्त भाव ग्रन्थ में प्राणातिपात आदि हैं। पन्द्रहवें अध्ययन का नाम 'जमईए' (यमकीय) है। इसकी सभी गाथाएँ 'यमक' अलंकार से युक्त हैं। इसमें संयम एवं मोक्षमार्ग की साधना का सुपरिणाम बताया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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