Book Title: Supasnahachariyam Part 03
Author(s): Lakshmangani, Hiralal Shastri
Publisher: ZZZ Unknown
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________________ जैन विविध-साहिय-शास्त्रमाला में बपी हुई पुस्तकों की सूचे / (1) सुरसुन्दरी-चरिअं-(कर्ता धनेश्वरसूरि ) यह 4000 गाथा प्रमाण प्राकृतभाषा का बडा ही मनोहर सुंदर महाकाव्य है। बड़ी विस्तृत प्रस्तावना सरल संस्कृत में दी गई है जिसले ग्रन्थकार तथा और 2 श्राचार्य संबन्धी अनेक ज्ञातव्य इतिवृत्तका ज्ञान होता है। मूल्य साधारण संस्करण रु.२-०-०, राजसंस्करण रु. 3-0-0 (2) हरिभद्रसरि-चरित्रम्- यह 1444 ग्रन्थके प्रणेता सुप्रसिद्ध विद्वान जैनाचार्य हरि म.लीका सुललित गद्य में लिखा हुआ संपूर्ण जीवन चरित्र है। जो कि अनेक अन्यों का अवलोकन कर बड़े ही परिश्रम से लिखा गया है। मूल्य रु. 0-4-0 मात्र। (3) सससंधान-महाकाव्यम्-( कर्ता महोपाध्याय श्रीमेघविजयजी गणि ) इसमें ऋषभनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीरस्वामी, श्रीकृष्ण और रामचन्द्र ये सातो महापुरुषोंके जीवन चरित्र वर्णित हैं / आश्चर्य की बात तो यह है कि इसके प्रत्येक श्लोकसे सातोंका जीवन चरित्र का वृत्तान्त निकलता है। बड़ा ही आश्चर्योत्पादक ग्रन्थ है। ऐसा एक भी काव्य संस्कृत साहित्य में नहीं है। कठिन स्थलों में टिप्पण भी दिया गया है। मूल्य मात्र रु. 0-8-0 / (4-6-12) सुपासनाह-चरिअं-(कर्ता श्रीलक्ष्मणगणि ) प्राकृत भाषा का यह एक मनो हर व बोधप्रद महाकाव्य है। स्थल स्थल में अनेक्त मनोरञ्जकथाओंसे भरपूर है / ऐसा सनोरम व सुबृहत् प्राकृत काव्य अभी तक अन्यत्र कहीं नही छपा। तीन भाग में संपूर्ण है। प्रत्येक भागका पत्राकाकारका मूल्य 2-8-0, पुस्तकाकार का 2-0-0 / ( 4 ) First Principles of Jaina Philosophy second Edition ) A succint Summary of Jaina metaphysics and Logic, Price 10 As. (7) शान्तिनाथ-चरित्रम्--(कर्ता महोपाध्याय श्रीमेघविजयजी गणि) संस्कृत साहित्य में "नैषधीय चरित्र” एक बड़ा ही सुरम्य रोचक महाकाव्य है। जिसकी कीर्ति सर्वत्र फैली हुई है / यह काव्य उसी काव्य की पादपूर्तिरूप से लिखा गया है / शान्तिनाथ भगवान का चरित्र वर्णित है। बड़ा ही मनोहर काव्य है / मूल्य 1-0-0 / (E) जैन लेख संग्रह-प्रथम भाग) संग्राहक बाबू पूरणचन्दजी नाहर एम, ए., बी. एल., वकील-हाई कोर्ट, कलकत्ता / इसमें प्राचीन जैन मूर्तियों तथा शिलाओं पर खुटे हुए 1000 लेखों का संग्रह है। इससे इतिहास सम्बन्धी बहुत सी बातें जानी जा सकती हैं। बड़े परिश्रम से तय्यार किया गया है / मूल्य 5-0-0 (हरयगासेहर-कहा-कत्ता श्री जिनहर्ष गणि। संस्कृत छाया से युक्त / मूल्य रु. 0--01 (10) विवेकमंजरी / सटीक-प्रथम भाग (स्टॉक में नहीं है)। (11) प्राकृतसूक्तरत्नमाला-इस ग्रन्थ में भिन्न भिन्न विषय के अनेक प्राचीन प्राकृत सुभाषितों का संग्रह किया गया है / संस्कृत छाया भी दी गई है / और साथ ही में अंग्रेजी भाषान्तर भी दिया गया है। मूल्य -:(12) कुम्मापुत्तचरिअं--यह प्राकृतपद्यबद्ध ग्रन्थ है / इसमें का पुत्र का चरित्र वर्णन किया गया है / संस्कृत छाया युक्त / मूल्य 0-4-1 / पत्र व्यवहार इस पते से करना चाहिएजैन विविध साहित्य शास्त्रमाला कार्यालय, बनारस सिटी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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