Book Title: Sukta Ratna Manjusha Part 03 Prakaranadi Pravachan Saroddhar Pindvishuddhi
Author(s): Bhavyasundarvijay
Publisher: Shramanopasak Parivar
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પ્રવચનસારોદ્ધાર સૂક્ત - રત્ન - મંજૂષા
૪૨ દોષો
५६४ आहाकम्मुद्देसिय, पूईकम्मे य मीसजाए य । ठवणा पाहुडियाए, पाओयर कीय पामिच्चे ॥७॥ आधादर्भ, सौदेशिड, पूतिङर्भ, मिश्रभत, स्थापना, प्राकृतिअ, प्राहुष्टुरा, डीत, प्रामित्य...
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५६५ परियट्टिए अभिहडुब्भिन्ने, मालोहडे य अच्छिज्जे । अणिसिट्ठेऽज्झोयरए, सोलस पिण्डुग्गमे दोसा ॥८ ॥ परिवर्तित, अभ्याहत, उद्दिन्न, भासापहृत, खाच्छेद्य, અનિસૃષ્ટ, અધ્યવપૂરક આ ૧૬ પિંડના ઉદ્ગમમાં (બનવામાં) લાગતા દોષો છે.
५६६ धाई दूइ निमित्ते, आजीव वणीमगे तिगिच्छा य ।
कोहे माणे माया, लोभे य हवंति दस एए ॥ ९ ॥ धात्री, हूती, निमित्त, आवड, वनीपड, थिङित्सा, श्रेध, भान, भाया, सोल, जा १०.
५६७ पुव्विं पच्छा संथव, विज्जा मंते य चुण्ण जोगे य । उप्पायणाए दोसा, सोलसमे मूलकम्मे य ॥१०॥
पूर्व अने पश्चात् संस्तव, विद्या, मंत्र, यूर्श, योग अने सोणभुं भूणर्भ, खा उत्पादनमां (वहोरवामां ) सागता होषो छे.
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