Book Title: Stree Tirthankar Mallinath ni Pratimao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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________________ स्त्रीतीर्थंकर मल्लिनाथनी प्रतिमाओ विजयशीलचन्द्रसूरि जैन शासन बे मुख्य धाराओमां वहेंचायेलुं धर्मशासन छे. आ बे धारा ते श्वेताम्बर धारा अने दिगम्बर धारा. आ बन्ने धाराओं बच्चे अनेक बाबतोमा मतभिन्नता छे, जेमांनी एक बाबत 'मल्लिनाथ भगवान' विषे छे. मल्लिनाथ ए आ काळना २४ पैकी १९मा जैन तीर्थंकर छे. तेओ स्त्री तरीके जन्म्या हतां, अने स्त्री तीर्थंकर तरीके तेमणे धर्मचक्र प्रवर्ताव्यं हतुं तेवी श्वेताम्बरीय संघनी मान्यताने दिगम्बर संघ स्वीकारतो नथी. दिगम्बर मत अनुसार, 'नग्नत्व' ज मोक्षपदनुं कारण छे; स्त्रीओ माटे नग्नत्व निषिद्ध होई तेओ स्त्रीलिंगे मोक्षपद प्राप्द करी न शके; तेथी स्त्री तीर्थंकर थाय के होय ए वात ज अप्रस्तुत गणाय. मल्लिनाथ पण पुरुष तीर्थंकर ज हता. आनी सामे श्वेताम्बरोनुं मन्तव्य एवं छे के शास्त्रोमा १५ प्रकारे 'सिद्ध' नुं वर्णन छे, तेमां 'स्त्रीलिंगे सिद्ध'नो पण प्रकार छे ज. वधुमां, स्त्री तीर्थंकरनुं धनुं ते प्रवर्तमान अवसर्पिणीकालनुं एक 'आश्चर्य' होवानुं शास्त्रकारो वर्णवे छे. परन्तु, भले 'आश्चर्य' तरीके तो तेम, पण स्त्री तीर्थंकर के केवलज्ञानी ( मात्र नग्नत्वना अभाव जेवा सामान्य कारणसर ) न बनी शके, अने मोक्षमां न जई शके, ते वात तो मान्य न ज थई शके. बल्के श्रीनन्दीसूत्र आदि ग्रन्थोमां तो विविध प्रकारना सिद्ध जीवोना अल्प - बहुत्वनुं वर्णन आवे छे त्यां 'स्त्री तीर्थकरी' ओ एकी साथे केटली संख्यामां 'सिद्ध' पद प्राप्त करे ? तेना जवाबमां त्यां 'एक करतां वधु (स्मृतिना आधारे : 'बे अथवा चार' एवो आंक छे)' स्त्री - तीर्थंकरो मोक्षे जाय, तेवो उत्तर लखेल छे. तात्पर्य ए के स्त्रीने मोक्षनो अधिकार छे, अने मल्लिनाथ जो स्त्रीतीर्थंकर तरीके थयां होय तो तेमां कोई बाध नथी. - आ तो थयो शास्त्रीय विवाद परन्तु शिल्पशास्त्रनी तथा पुरातत्त्वशास्त्रनी दृष्टिए केटलाक पुरावा एवा सांपड्या छे के जे श्वेताम्बर धारानी मान्यताने यथार्थ अने उचित ठेरवे. जेवा के मल्लिनाथनी स्त्रीदेहधारी जिनप्रतिमाओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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