Book Title: Stotrasamucchaya
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Pandurang Javji

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Page 16
________________ प्रतिपदसरस्वतीशब्दयमकमयं श्रीयुगादिजिनस्तवनम् । सदा चिदानन्दनिदानमद्वयं जगत्रयीत्राणधुरीणपद्वयम् । सरस्वतीतुष्टिकृते सरस्वतीपदार्थसाथैः प्रथमं जिनं स्तुवे ॥१॥ सरखतीलब्धवरावगाह्ये सरस्वतीवेश! तव स्तवे स्वाम् । सरस्वतीमेष परस्तवैकसरस्वतीर्णामपि तारयामि ॥ २ ॥ सरस्वतीमेकैलकन्यकास्वःसरस्वतीसिन्धुमुखेषु मजन् । सरस्वतीष्वर्थयते न शुद्ध सरस्वतीव स्तवने तवास्तान् ॥ ३ ॥ सरस्वतीमेत्य मनोरतीरं सरस्वतीत्यत्रिदशैः प्रभो! यत् । सरस्वतीतेषु दिनेषु दोग्धृसरस्वतीभिः स्नपितोऽसि वार्भिः ॥४॥ सरस्वतीनाथनिरस्य पाद्मसरस्वतीमम्बुजवासलीलाम् । सरस्वतीरुग्भिरुपैत् पदे ते सरस्वतीतातिरदोऽर्चको यत् ॥ ५॥ सरस्वतीपतिरपि प्रदत्तसरस्वतीदुग्धसुधामुधात्वैः।। सरस्वतीसद्धवलैः कृता च सरस्वतीर्थोद्भवगायति त्वाम् ।। ६॥ सरस्वती पत्रभरैर्हरं मत्सरस्वतीयं परिपूज्य पूर्वम् । सरस्वती त्वत्कुमुदोपमे वा सरस्वतीवापुषि वादहेतोः ॥ ७ ॥ सरस्वती पूजयते मयि त्वं सरस्वतीत्थं तव कर्तृताये। सरस्वतीर्थङ्करकर्मभावं सरस्वतीव प्रकृते तथाऽस्य ॥ ८॥ सरस्वती यन्नयनेन वीक्ष्य सरस्वतीस्त्वय्यपि दुष्टक्लप्ताः । सरस्वती न क्षुधितस्य तस्य सरस्वतीतिश्च पिपासितस्य ॥ ९॥ १ मेखलकन्यका-नर्बदानदी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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