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श्रीगणेशाय नमः स्मृतिमहत्त्व
संसार की परम्पराओं में से प्रकाश और अन्धकार, विकास और संकोच की दो अनादिधारायें निरन्तर प्रवाहित होती रहती हैं। संसार को सागर कहा जाय तो ज्वार और भाटारूपी लीला स्वतः इस लीला के कार्य और कारण बन रही है। समुद्र के अतिरिक्त जैसे ज्वार-भाटा कोई वस्तु नहीं है नाम ज्वार-भाटा है उथल-पुथल इनका स्वरूप भी है, परन्तु वस्तुतः समुद्र ही ज्वार-भाटा है; बनने और बिगड़नेवाला संसार वास्तव में कोई सत्य वस्तु नहीं है उसकी, आधाररूपी आत्मतत्त्व से प्रतीति मात्र है। अतः इसके बिगड़ने और बनने में धीर व्यक्ति अधीर नहीं होते हैं। “धीरस्तत्र न गुह्यति"।
संसार की प्रतीति दिन-रात से होती है। दिन-रात का कारण एकमात्र प्रकाशवान् सूर्य है, सूर्य का प्रकाश ही चुम्बकीय आकर्षण है, यही जड़-चैतन्य संसार का प्रधान तत्त्व है। इस संसार में आदिकाल से दो प्रकार की शक्ति-विद्या-अविद्या, ज्ञान-अज्ञान, देवी-आसुरी का क्रम चल रहा है। सृष्टि क्या है ? इसकी रचना-शक्ति की वास्तविकता पर न केवल भारतवर्ष में अपितु विश्व में अनेक दार्शनिक गवेषणायें सम्प्रदायानुसार