Book Title: Sirival Kaha
Author(s): Rajshekharsuri
Publisher: Sisodara Shwe Mu Pu Jain Sangh

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Page 312
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ****** ****************** तस्सीसहेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स परिसंमि / चउदसअट्ठावीसे, लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं // 1341 // सायरमेरू जा महियलंमि जा नहयलम्मि ससिसूरा / वटुंति ताव नंदउ, वाइज्जंता कहा एसा // 1342 // तच्छिष्यहेमचन्द्रेण साधुना विक्रमादित्यसम्बन्धिनि चतुर्दशशतोपर्यष्टाविंशतितमे वर्षे लिखिता, कीदृशेन?गुरोर्भक्तिर्गुरुभक्तिस्तया कलितो-युक्तस्तेन ॥१३४१॥यावन्महीतले पृथ्वीतले सागरः-समुद्रो मेरुश्च-कनकाचलो द्वावपि वर्तेते, तथा नभस्तले-आकाशे यावत् शशिसूरौ-चन्द्रसूर्यो वर्तेते तावदेषा श्रीपालनरेन्द्रकथा वाच्यमाना सती नन्दतु-समृद्धिं लभताम् // 1342 // // इति श्रीपालचरित्रं श्रीरत्नशेखरसूरिवर्यविहितं समाप्तम् // सिद्धान्तमहोदधि- श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरपट्टालङ्कार- श्रीहीरसूरीश्वरपट्टालङ्कार श्री ललितशेखरसूरिवराणां शिष्येण श्री राजशेखरसूरिणा संपादितं श्रीपालचरित्रं समाप्तम् For Private and Personal Use Only

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