Book Title: Shukl Jain Mahabharat 01
Author(s): Shuklchand Maharaj
Publisher: Kashiram Smruti Granthmala Delhi

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Page 610
________________ ५८६ जैन महाभारत मनुष्य को कोई भी कार्य चाहे वह सासारिक हो व आध्यात्मिक उसके प्रतिफलकी अभिलाषा नहीं करनी चाहिये कर्तव्य पालनका लक्ष्य रखना ही मानवता है । कर्तव्य पालन का फल तो सुन्दर होता ही है फिर इस विषय मे शका क्यों। शका निश्चय को चंचल करती है। अभिलाषा पुनर्जन्म की जड़ को हरी भरी बनाती है अतः आत्मा को कर्तव्यनिष्ठ ही रहना चाहिए । खैर, चिंतत होने की आवश्यकता नहीं यह द्रोपदी कन्या सर्व कर्म मल को क्षय करके मोक्षप्राप्त करेगी।" यह कह कर मुनि अदृश्य हो गये। द्रोपदी के पूर्व, जन्म के वृतान्त को सुन कर हुआ चूलना के हृदय को शान्ति मिली और उपास्थित नृपो की हृदय शका भी दूर हो गई। पश्चात् महाराज द्रुपद ने कुल परम्परानुसार अर्जुन के साथ बड़ी घूमधाम से विवाह कर दिया। द्रोपदी जैसी रूपवती गुणवती पुत्रवधू को पाकर महाराज पाण्डू तथा कुन्ती, माद्री सभी कृतकृत्य हो उठे। सर्वत्र प्रसन्नता का वतावरण छाया रहा । इस प्रकार कार्य समाप्ति के पश्चात् महाराज पाण्डू श्री कृष्ण व दशों दशा) सहित हस्तिनापुर चल पडे । ___ उधर सदेश वाहक द्वारा द्रौपदी विवाह की सूचना पाते ही अन्य मंत्रियों, राजकर्मचारियो ने हस्तिनापुर नगर को नवविवाहित दूल्हे भॉति सजवाया । द्विपथ, चतुष्य आदि राज मार्गो मे नाना कलाकारी द्वारा निर्मित नाना भॉति के द्वार अवस्थित थे । उन प्रत्येक द्वारशिखर पर राज्य चिह्नाकिंत ध्वजाएँ फहरा रही थीं। द्वार भाल नव विवाहित राजकुमार व नव वधू की मगलकामना के सूचक वाक्यों से मडित थे । नगर प्रवेश द्वार तथा दुर्ग के प्रमुख द्वार पर स्थित मणिरत्नो से निर्मित 'स्वागतम्' शुभागमन' पट्ट आनेवाले वर-वधू तथा श्रीकृष्ण जैसे पराक्रमी भावी वासुदेव का नगरवासियों की ओर से स्वागतार्थ प्रतीक्षा कर रहे थे। मारा नगर रगविरगी पताकाओं से आच्छादित था । राजप्रसादो व राजभवनों का शृगार तो सचमुच वर्णनातीत था ही किन्तु नगरवासी प्रसिद्ध श्रेष्ठियो की अट्टालिकाएँ भी राजप्रसाद की होड करने लगी। मध्यमवर्गीय लोगों के भवन उन अट्टालिकाओं की ममता करने लगे थे। स्थान स्थान पर नृत्य गान का आयोजन होने कागा. जिममें पायाल वृद्ध सभी आनंद लुटने लगे। इस प्रकार आग

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