Book Title: Shravan belgola ke Abhilekho me Varnit Banking Pranali
Author(s): Bhishan Swarup Rastogi
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 2
________________ ब्याज से तीन मान दूध लिया जाता था । उपर्युक्त ये तीनों हीं अभिलेख तत्कालीन ब्याज की प्रतिशतता जानने के प्रामाणिक साधन हैं किन्तु इन अभिलेखों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि उस समय ब्याज की प्रतिशतता कोई निश्चित नहीं थी। क्योंकि वे दोनों लेख एक ही स्थान (विन्ध्यगिरि पर्वत) तथा एक ही वर्ष ( शक संवत् ११३७ ) के हैं किन्तु एक अभिलेख में चार गद्याण के ब्याज से प्रतिदिन तीन मान दूध तथा दूसरे में तीन गद्याण के ब्याज से भी तीम भमान दूध प्रतिदिन मिलता था । किन्तु इसका विस्तृत विवेचन आगे किया जाएगा। पूजा एवं नित्याभिषेकादि के अतिरिक्त प्रयोजनों के लिए भी धन का दान दिया जाता था । दानकर्ता कुछ धन को जमा करवा देता था तथा उससे प्राप्त होने वाले ब्याज से मन्दिरों-बस्तियों का जीर्णोद्धार तथा मुनियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता था । पहले बेलगोल में ध्वंस बस्ति के समीप एक पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक अभिलेख' में वर्णन आया है कि त्रिभुवनमल्ल एरेय ने बस्तियों के जीर्णोद्धार एवं आहार आदि के लिए बारह गद्याण जमा करवाए। श्रीमती अब्वे ने भी चार गद्याण का दान दिया। धन दान के अतिरिक्त भूमि तथा ग्राम देने के भी उल्लेख अभिलेखों में मिलते हैं। इसे 'निक्षेप' नाम से संशित किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत कुछ सीमित 'वस्तु देकर प्रतिवर्ष या प्रतिमास कुछ धन या वस्तु ब्याज स्वरूप ली जाती थी। इस दान की भूमि या ग्राम से पूजा सामग्री, पुष्प मालाएं, दूध, मुनियों के लिए आहार मन्दिरों के लिए अन्य सामग्री प्राप्त को जाती थी। शक संवत् ११०० के एक अभिलेख के अनुसार ' बेल्गुल के व्यापारियों ने गङ्गसमुद्र और गोम्मटपुर की कुछ भूमि खरीदकर गोम्मट देव की पूजा के निमित्त पुष्ष देने के लिए एक माली को सदा के लिए प्रदान की चिक्क मदुकण्ण ने भी कुछ भूमि खरीदकर गोम्मटदेव की प्रतिदिन पूजा हेतु बीस पुष्प मालाबों के लिए अर्पित कर दी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भूमि से होने वाली आय का कुछ प्रतिशत धन या वस्तु देनी पड़ती थी । इसी प्रकार के भूमिदान से सम्बन्धित उल्लेख अभिलेखों में मिलते हैं। तत्कालीन समाज में भूमिदान के साथ-साथ ग्राम दान की परम्परा भी विद्यमान थी। ग्राम को किसी व्यक्ति को सौंप दिया जाता था तथा उससे प्राप्त होने वाली आय से अनेक धार्मिक कार्यों का सम्पादन किया जाता था। एक अभिलेख के अनुसार दानशाला और बेल्गुल मठ की आजीविका हेतु ८० वरह की आय वाले कबालु नामक ग्राम का दान दिया गया। इसके अतिरिक्त जीर्णोद्वार, आहार, पूजा, आदि के लिए ग्राम दान के उल्लेख मिलते हैं । । आलोच्य अभिलेखों में कुछ ऐसे भी उदाहरण मिलते है, जिसमें किसी वस्तु या सम्पत्ति को न्यास के रूप में रखकर ब्याज पर पैसा ले लिया जाता था तथा पैसा लौटाने पर सम्पत्ति को लौटा दिया जाता था। इस जमा करने के प्रकार को 'अन्विहित' कहा जाता था। ब्रह्मदेव मण्डप के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार महाराजा चामराज औडेयर ने चेन्नन्न आदि साहूकारों को बुलाकर कहा कि तुम बेल्गुल मन्दिर की भूमि मुक्त कर दो, हम तुम्हारा रुपया देते हैं। इसी प्रकार का वर्णन एक अन्य अभिलेख में भी मिलता है। इसके अतिरिक्त प्रतिमास या प्रति वर्ष जमा कराने की परम्परा उस समय विद्यमान थी। इसकी समानता वर्तमान आवत जमा योजना (Recurring Deposit Scheme) से की जा सकती है। इसमें पैसा जमा किया जाता था तथा उसी पैसे से अनेक कार्यों का सम्पादन किया जाता था। विन्ध्यगिरि पर्वत के एक अभिलेख के अनुसार बेल्कुल के समस्त जौहरियों ने गोम्मटदेव और पार्श्वदेव की पुष्प-पूजा लिए वार्षिक धन देने का संकल्प किया। एक अन्य अभिलेख' में वर्णन आता है कि अङ्गरक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रत्येक घर से एक 'हग' ( सम्भवत: तीस पैसे के समकक्ष कोई सिक्का) जमा करवाया जाता था। जमा करने के लिए श्रेणी या निगम कार्य करता था। इस प्रकार जमा करने की विभिन्न पद्धतियाँ उस समय विद्यमान थी।" के ब्याज की प्रतिशतता — आलोच्य अभिलेख तत्कालीन ब्याज की प्रतिशतता जानने के प्रामाणिक साधन है। इन अभिलेखों में ब्याज के रूप में दूध प्राप्त करने के उल्लेख अधिक मात्रा में हैं। इसलिए सर्वप्रथम हमें दूध के माप की इकाइयों जान लेनी चाहिए । अभिलेखों में दूध के माप की दो इकायां मिलती हैं-- मान और बल्ल । मान दो सेर के बराबर का कोई माप होता था तथा बल्ल दो सेर १. वही म े० ० ४१२ । २. बही - ० सं० १३५ । ३. वही सं० से १२ । ४. - बही - ल े० सं० ४६५ । बही-ल० सं० ५. ६. ८. E. १०. - वही - ल े० सं० ४३३ । वही मे० से ८४ | ५३, ५१, ६६, १०६, १२६, ४५४, ४७६ मादि । - वही से० ० १४० । - बही - ल े० सं ९१ । वही ल े० सं० ९४ । गोम्मटेश विश्वन Jain Education International For Private & Personal Use Only ४३ www.jainelibrary.org

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