Book Title: Shravak Pratikraman me Shraman Sutra ke Panch Patho ki Prasangikta Nahi Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ 15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 138 श्रावक - प्रतिक्रमण में श्रमणसूत्र के पाँच पाठों की प्रासंगिकता नहीं श्री धर्मचन्द जैन श्रमण एवं श्रावक के प्रतिक्रमण में अन्तर को स्पष्ट करते हुए श्री जैन ने श्रावक प्रतिक्रमण में पृथक् से बोले जाने वाले पाँच पाठों के संबंध में चर्चा की है। -सम्पादक साधक के अनेकानेक आवश्यक कर्त्तव्यों में एक कर्तव्य है - प्रतिक्रमण । प्रतिक्रमण का शाब्दिक अर्थ है पीछे की ओर लौटना । स्वीकृत व्रत नियमों एवं मर्यादाओं में जो भी कोई अतिचार लगे हों, उनकी आलोचना कर पुनः मर्यादा में स्थिर होने को प्रतिक्रमण कहते हैं। प्रतिक्रमण का मूल नाम आवश्यक है। आवश्यक के छः भेद किये गये हैं- सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान आवश्यक । इन छह आवश्यकों में प्रतिक्रमण आवश्यक सबसे महत्त्वपूर्ण होने के कारण आवश्यक सूत्र को प्रतिक्रमण सूत्र के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम के तीन आवश्यक भूमिका रूप में हैं तथा चौथे प्रतिक्रमण आवश्यक के बाद के दो आवश्यक उत्तर क्रिया के रूप में हैं। श्रमण व श्रावक प्रतिक्रमण में अन्तर साधु-साध्वी हों चाहे श्रावक-श्राविका हों, सभी के लिये उभयकाल प्रतिदिन प्रतिक्रमण करना आवश्यक है, तथापि दोनों के प्रतिक्रमण में कुछ अन्तर भी है: - साधु-साध्वियों द्वारा उभयकाल किया जाने वाला प्रतिक्रमण श्रमण- प्रतिक्रमण कहलाता है तथा श्रावक-श्राविकाओं द्वारा उभयकाल किया जाने वाला प्रतिक्रमण श्रावक-प्रतिक्रमण कहलाता है। - साधु-साध्वी पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि का तीन करण तीन योग से जीवन भर के लिये पालन करते हैं, अतः उनके प्रतिक्रमण में तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं शब्द बोले जाते हैं। जबकि श्रावक व्रत-नियमों को अपनी शक्ति, सामर्थ्य एवं योग्यता के अनुसार अलग-अलग करण योगों से धारण करते हैं, अतः श्रावक प्रतिक्रमण में बारह व्रतों की आलोचना में कहीं एक करण एक योग, कहीं एक करण तीन योग तो कहीं दो करण तीन योग शब्दों के प्रयोग किये जाते हैं। श्रमण प्रतिक्रमण में 'समण' शब्द का प्रयोग होता है जबकि श्रावक प्रतिक्रमण में 'सावग' शब्द का प्रयोग होता है। श्रमण प्रतिक्रमण में पाँच पाठ अलग से बोले जाते हैं, किन्तु श्रावक प्रतिक्रमण में नहीं बोले जाते हैं पाँच पाठों की प्रासंगिकता नहीं - यद्यपि कतिपय परम्पराएँ श्रावक प्रतिक्रमण में भी श्रमण सूत्र के पाँच पाठों को बोलती हैं एवं बोलना अनिवार्य मानती हैं। यहाँ हम यह विचार करें श्रमण सूत्र के निम्न पाँच पाठों को श्रावक प्रतिक्रमण में बोलना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education InternationalPage Navigation
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