Book Title: Shravak Pratikraman Sambandhi Prashnottar
Author(s): Chandmal Karnavat
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 6
________________ 1300 | जिनवाणी 15,17 नवम्बर 2006 उत्तर दिशिव्रत में मर्यादित सीमा के बाहर भी जाना पड़ जाय, अपनी इच्छा से नहीं, परन्तु विवशतावश और अनिवार्यतावश, तो भी श्रावक मन, वचन से उसका अनुमोदन नहीं करता हुआ आगे जाकर भी 5 आस्रव का सेवन नहीं करता। गृहस्थ जीवन की स्थितियों को लक्ष्य कर ऐसा निर्धारण किया जाना संभव है। प्रश्न श्रावक के व्रतों में करण-योग का उल्लेख किया गया है। किन्तु १२वें अतिथि संविभाग व्रत में करण योग का उल्लेख नहीं। ऐसा क्यों है? उत्तर करण योग का उल्लेख सावध क्रियाओं के संदर्भ में ही किया गया है। परन्तु अतिथि संविभाग व्रत में 14 प्रकार की वस्तुओं का साधु-साध्वी जी को दान देने/प्रतिलाभित करने का प्रसंग है, जो (दान) किसी प्रकार से सावध क्रिया नहीं है। अतः बारहवें व्रत में करण योग का उल्लेख नहीं होना संभव लगता है। -35 अहिंसापुरी, गौशाला के सामने, उदयपुर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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