Book Title: Shravak Dwadash Vrat Chatushpadika Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 132 अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ व्रत पंचम तणउ सुणि भेउ परिग्रह तणउं प्रमाण करेउ / अणहूता मनमंगल देहु, तम्ह कोलीआ जेम वेटेहु // 9 // धम्मिय छट्ठउं व्रत निसुणेहु, दिग प्रामाणि तहिं तेमु करेहु / मन मोकल इंम मेल्हि असारि बहुत जोनि हिडिसि संसारि // 10 // व्रत सत्तम तणउ सुणि बंधु भोग प्रभोगह करउं निबंध / पंचइ इन्द्रिय जे वसि करइं ते भवसायरु लीलई तरई // 11 // व्रत अट्ठम तणउ विचारु, अनरथ दंड करउ परिहारु / अनेक भेद जे धर्मह तणा एक जीहिं नहु जाअइ वर्णवा // 12 // नवमइ व्रति सामायक लेउ, पडिकमणउं सिज्झायु करेउ / अणुदिणु थुणउ जिणेसर देउ, दुक्खिय कर्म जिम एम उछेउ // 13 // दसमा व्रतह तणी विधि जोइ, जिम वलि आवागमणु न होइ / दस दिसि मनु पसरंतु निक(का)रि, जिणवर तणां चलण अनुसारि // 14 // जो जिणधम्मह बूझइ भेउ, व्रतु एकादसमउं निसुणेउ / पोसह तणउ करउ उपवासु, जिम तुम्हि पामउ सिद्धिहि वासु // 15 // व्रत बारमउं भविय निसुणेहु अतिथिदानु फल भणियइ एहु / चंदणि सूपि किया कोमासि वीर पराविउ छट्ठइ मासि // 16 // पारणए तहिं वीरज जिणिंद जय जयकार करइं सुरइंद / कंचण कोडि बारस विसेस, अमर वरीसई तत्थ पएसि // 17 // सती एक सलहीजइ नारि, दिन्नु दानु को मास वियारि / कोसंबी नयरी सुविसाल, जगि जयवंती चंदणबाल // 18 // बारह व्रत श्रावक संभलउ, भावु भगति मन अविचलु धरउ / सव्वं(च्च)उं वयणु सुणउ सहु कोइ, जीवदया विणु धर्म न होइ // 19 // // इति श्रावकव्रत चतुष्पदिका //Page Navigation
1 2