Book Title: Shramanachar aur Adhunikta se Grast Shravak Author(s): Mohankaur Jain Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 1
________________ . 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 404 श्रमणाचार और आधुनिकता से ग्रस्त श्रावक श्रीमती मोहनकौर जैन वैज्ञानिक युग में श्रावकों की बदलती जीवनचर्या एवं सुविधाओं के कारण श्रमणश्रमणियों को सरलता से शुद्ध आहार-पानी मिलना भी कठिन हो गया है। विद्युत काल बेल, कुत्ता-पालन, गैस चूल्हा, रेफ्रीजरेटर, टेलीफोन, लिफ्ट आदि अनेक ऐसे वैज्ञानिकयुगीन रोग हैं, जो श्रमणाचार के परिपालना में पालक हैं। श्रावकों को अपने आचार का बोध भी नहीं है तथा श्रमणों की चर्या से भी अनभिज्ञ हैं, अतः श्रावकों को इस दिशा में जागरूक होने की आवश्यकता है।-सम्पादक अल्पाहारी, उग्र विहारी, अपरिग्रही, वीतराग धर्म के आराधक एवं अहिंसक जीवन शैली अपनाने वाले निर्ग्रन्थ मुनिराजों के सम्पर्क में आते ही सुखी जीवन के रहस्य का पता चलता है। उनके सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति शान्त, सौम्य, सरल, सन्तोषी, क्षमा की साक्षात् प्रतिमा के परमाणुओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। उसे लगता है दुनिया में सबसे सुखी यदि कोई है तो मात्र अहिंसा के पुजारी, षट्काय के प्रतिपालक, कंचन-कामिनी के त्यागी, वीतरागी जैन श्रमण। उनके दर्शन मात्र से आत्मशान्ति की प्राप्ति होती है और ऐसा लगता है, काश! मैं भी मोह-ममत्व का त्याग कर साधनापथ पर प्रतिपल अग्रसर होते हुए मनुष्य जन्म को सार्थक करूँ, पर यह क्या? दूसरे ही क्षण विचार आता है- मेरे पीछे पेट लगा है। पेट की क्षुधा तो शान्त करनी ही होगी। वर्तमान में 'अम्मा पियरो' कहलाने वाले हमारे श्रावक-श्राविकाएँ अपने श्रावकाचार को भूलते जा रहे हैं। कारण स्पष्ट है वर्तमान में श्रावक-श्राविकाएँ मूल रूप में वैज्ञानिकयुगीन रोगों से ग्रस्त हैं। वे पूर्ण रूप से विज्ञान के दास बन चुके हैं, ऐसी स्थिति में भगवान् महावीर ने जो श्रमणाचार बताया है, क्या मैं उसका पालन कर सकूँगा? कया मुझमें इतना साहस है? कहा भी है कि- “तलवार की धार पर चलना सरल है, पर जैन श्रमणाचार का पालन करना उससे कहीं कठिन है।" अब लीजिए, मैं पहले उन आधुनिक वैज्ञानिक रोगों से भी आपका परिचय करवा दूं। 1. प्रथम रोग है विद्युत कॉल बेल- वर्तमान में संयुक्त परिवार प्रथा विलुप्त हो चुकी है। जहाँ-तहाँ एकाकी एवं छोटे परिवार में लोग विघटित हो गए हैं। शहर के बाहर फ्लेट में रहते हैं, अड़ौस-पड़ोस से उनका कोई लेना-देना नहीं। ऐसी स्थिति में घर के पट बन्द रहते हैं। घर के बाहर कॉल बेल का स्वीच लगा रहता है। श्रमणाचार के पालक न तो बन्द द्वार खोलते हैं और न ही विद्युत कॉल-बैल का स्वीच ऑन-आफ करते हैं। ऐसी स्थिति में साथ चलने वाला श्रावक कॉल-बेल की सहायता से गृह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4