Book Title: Shramanachar Pramukh Prashnottar
Author(s): P M Choradiya
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 3
________________ 348 प्रश्न: उत्तर: प्रश्न: उत्तर: प्रश्न: उत्तर: प्रश्न: उत्तर: प्रश्न: उत्तर: प्रश्न: उत्तर: जिनवाणी जाता है। श्रमण दिवस के चार प्रहर एवं रात्रि के चार प्रहरों में अपनी चर्या किस प्रकार सम्पन्न करें? श्रम दिन के प्रथम प्रहर में मुख्यतः स्वाध्याय, द्वितीय में ध्यान, तृतीय में भिक्षाचर्या तथा चतुर्थ में फिर स्वाध्याय करे। इसी प्रकार रात्रि के चार प्रहरों में प्रथम में स्वाध्याय, द्वितीय में ध्यान, तृतीय में निद्रा एवं चतुर्थ में पुनः स्वाध्याय करे । साधु को 27 गुणों के अतिरिक्त भी अनेक कार्य करने होते हैं, इनमें मुख्य कौन-कौनसे हैं ? जीवन पर्यन्त पादविहार करना, एक वर्ष में दो बार अपने मस्तक के बालों का लोच करना, गृहस्थों के घरों से भिक्षा मांग कर लाना आदि । सच्ची साधना करने का मूल उद्देश्य क्या है ? संसार के जन्म-मरण, इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, रोग, शोक, आधि, व्याधि, उपाधि और कर्मों की दासता से छुटकारा पाकर मोक्ष प्राप्त करना ही सच्ची धर्म-साधना का मूल उद्देश्य है । जैन आचार- शास्त्रों में अहिंसा व्रत की सम्पूर्ण साधना के लिए रात्रि भोजन का त्याग अनिवार्य क्यों कहा गया है ? Jain Educationa International दशवैकालिक सूत्र के ‘क्षुल्लाकाचार - कथा' नामक तृतीय अध्ययन में निर्ग्रन्थों के लिए औदेशिक भोजन, क्रीत भोजन, आमन्त्रण स्वीकार कर ग्रहण किया हुआ भोजन यावत् रात्र भोजन का निषेध किया गया है। षड्-जीवनिकाय नामक चतुर्थ अध्ययन में पाँच महाव्रतों के साथ रात्रि भोजन विरमण का भी प्रतिपादन किया गया है एवं उसे छठा व्रत कहा गया है। आचारप्रणिधि नामक आठवें अध्ययन में स्पष्ट कहा गया है कि रात्रि भोजन हिंसादि दोषों का जनक है। इस प्रकार जैन आचार-ग्रन्थों में सर्वविरत के लिए रात्रि भोजन का सर्वथा निषेध किया गया है । 10 जनवरी 2011 मुनि के ग्रहण करने योग्य पदार्थों के विषय में क्या कहा गया है ? आवश्यक सूत्र में मुनि के ग्रहण करने योग्य 14 प्रकार के पदार्थों का उल्लेख है: 1. अशन, 2. पान, 3. खादिम, 4. स्वादिम, 5. वस्त्र, 6. पात्र, 7. कम्बल, 8. पादपोंछन, 9. पीठ, 10. फलक, 11. शय्या, 12. संस्तारक, 13. औषध, 14. भेषज । उत्तराध्ययन सूत्र के समाचारी नामक छब्बीसवें अध्ययन के अनुसार आहार किन कारणों से ग्रहण करना चाहिए? (1) वेदना अर्थात् क्षुधा की शान्ति के लिए । (2) वैयावृत्त्य अर्थात् सेवा करने के लिए। (3) ईर्यापथ अर्थात् मार्ग में गमनागमन की निर्दोष प्रवृत्ति के लिए । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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