Book Title: Shraman Suchak Paribhashik Shabda Dashvaikalik Niryukti ke Alok me
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 294 श्रमण सूचक पारिभाषिक शब्द : दशवैकालिक नियुक्ति के आलोक में श्रीमती (डॉ.) हेमलता जैन ( ललवाणी) 'श्रमण' शब्द की विविध व्याख्याएँ हैं । लेखिका ने दशवैकालिक नियुक्ति के आलोक में श्रम, सम, शम, सुमन के आधार पर श्रमण की व्याख्या करने के साथ श्रमण की क्रियाओं एवं उपमाओं से भी श्रमण के वैशिष्ट्य को रेखांकित किया है। -सम्पादक जैन आगमों के व्याख्या ग्रन्थों में नियुक्ति प्राकृत पद्यबद्ध रचना है। निर्युक्ति साहित्य में आगम के कुछ विशेष पारिभाषिक शब्दों को व्याख्यायित किया गया है। प्राचीनता की दृष्टि से व्याख्या -ग्रन्थों में नियुक्ति का स्थान महत्त्वपूर्ण है। इसमें धर्म, दर्शन, व्याकरण, समाज, इतिहास आदि से जुड़े विषयों का सुन्दर निदर्शन है। नियुक्ति क्या है, इसका स्वरूप कैसा होता है, इस सम्बन्ध में कुछ विशेष बिन्दु निम्नांकित हैं1. आचार्य शीलांक के अनुसार नियुक्ति सम्यक् अर्थ का निर्णय कर सूत्र में ही परस्पर संबद्ध अर्थ को प्रकट करती है । ' 2. आचार्य हरिभद्र के अनुसार क्रिया, कारक, भेद और पर्यायवाची शब्दों द्वारा शब्द की व्याख्या करना या अर्थ प्रकट करना निर्युक्ति है । ' 3. प्रत्येक शब्द विविध अर्थधायक होता है। कौनसा अर्थ किस प्रसंग में घटित होता है, इसे नियुक्ति में निक्षेप पद्धति से व्याख्यायित किया गया है । यह नियुक्ति की भाषागत विशेषता है। 4. निर्युक्ति शब्द की क्रमिक व्याख्या करती है। सर्वप्रथम निक्षेप - निर्युक्ति अर्थ का मात्र कथन करती है। तत्पश्चात् उपोद्घात-निर्युक्ति में 26 प्रकार से उस विषय या शब्द की मीमांसा होती है। फिर सूत्र - स्पर्शिकानिर्युक्ति सूत्र के शब्द की व्याख्या प्रस्तुत करती है। आवश्यक नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु द्वारा दस निर्युक्तियों के लिपिबद्ध होने का उल्लेख मिलता है। निर्युक्ति के रचनाकार और संख्या के सम्बन्ध में विद्वान एक मत नहीं हैं। दशवैकालिकनिर्युक्ति का उन दस निर्युक्तियों के रचना - क्रम में द्वितीय स्थान है । हस्तलिखित प्रति, चूर्णि साहित्य और टीका साहित्य इन तीन स्रोतों से दशवैकालिक निर्युक्ति उपलब्ध होती है। यह निर्युक्ति अध्ययन, श्रमण, काम, भिक्षु आदि कुछ विशेष शब्दों की मौलिक निरुक्ति करती है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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