Book Title: Shraman Pratikraman Ek Vivechan
Author(s): Maunasundariji
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 1
________________ श्रमणप्रतिक्रमण : एक विवेचन शासनप्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरी जी म. सा. आवश्यक सूत्र के प्रतिक्रमण अध्ययन में श्रमण-प्रतिक्रमण से सम्बद्ध पाँच पाठ आये हैं१. शय्यासूत्र २. गोचरचर्या सूत्र ३. कालप्रतिलेखना सूत्र ४. तैतीस बोल का पाठ और ५. प्रतिज्ञा सूत्र | आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्र जी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी साध्वीप्रमुखा शासनप्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरीजी म.सा. के प्रवचन एवं विश्लेषण के आधार पर संकलित यह लेख श्रमण प्रतिक्रमण के पाँच पाठों का विवेचन करता है। -सम्पादक 15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 69 श्रावक धर्म की साधना के पश्चात् श्रमणधर्म की साधना आती है। यह साधना तलवार की धार पर चलने के समान है। इस श्रमणजीवन में मात्र वेश परिवर्तन करना ही नहीं होता, किन्तु जीवन परिवर्तन करना पड़ता है। क्योंकि कहा जाता है- "बाना बदला सौ सौ बार, पण बाण बदले तो खेवा पार ।" यह मार्ग फूलों का नहीं, शूलों का मार्ग है। यही तो कारण है कि उत्तराध्ययन सूत्र के १९ वें अध्ययन में मृगापुत्र को समझाती हुई उनकी माता कहती है- बेटा ! यह श्रमण जीवन अनेक कठिनाइयों से भरा हुआ है। मैं अधिक क्या कहूँ- यह कायरों का नहीं, धीर-वीर-गंभीर, साहसी शूरवीरों का पावन दुर्गम पथ है। जो व्यक्ति साहसहीन है, इन्द्रियों का दास है, भोगों का गुलाम है, कामना व वासना के पीछे मारेमारे भटकने वाला है, वह इस कठोर पथ पर कैसे चल सकता है। इस पथ पर पैर रखने के पश्चात् उसे कभी भी न्याय पथ से विचलित नहीं होना है। जैसाकि नीति वाक्य है निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु । लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः । । शास्त्रकारों ने कहा लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा । समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ अर्थात् श्रमण लाभ-अलाभ ( हानि ) में, सुख-दुःख में, जीवन-मरण में, निन्दा - प्रशंसा में समान रहता है । वह मानवों में श्रेष्ठ है। Jain Education International श्रमण वही है, जो शरीर की आसक्ति पर विजय का प्रयास करता है, जिसका कामना से मन हट चुका है, जो प्राणियों को पीड़ा नहीं देता है और १८ पापों से जिसने किनारा कर लिया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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