Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 14
________________ // नवकारफलकुलकम् // घणघाइकम्ममुक्का अरहंता तह य सव्वसिद्धा य / आयरिय-उवज्झाया पवरा तह सव्वसाहू य // 1 // एयाणं नमुक्कारो, पंचण्ह वि पवरलक्खणधराणं / भवियाण होइ सरणं, संसारे संसरंताणं // 2 // उड्ड-मह-तिरियलोए, जिणनवकारो पहाणओ नवरं / नर-सुर-सिवसुक्खाणं, कारणं इत्थ भुवणम्मि // 3 // तेण इमो निच्चं चिय, पढियइ सुत्तुट्ठिएहि अणवरयं / होइ च्चिय दुहदलणो सुहजणओ, भवियलोयस्स // 4 // जाए वि जो पढिज्जइ, जेण य जायस्स होइ फलरिद्धी। अवसाणे वि पढिज्जइ, जेण मओ सुग्गइं जाइ आवइहिं पि पढिज्जइ जेण य लंघेइ आवयसयाई / रिद्धीहिं वि पढिज्जइ जेसा जाइ वित्थारं / नवसिरि हुति सुराणं, विज्जाहरतेय (ते य) नरवरिंदाणं / जाण इमो नवकारो, सासु व्व पइट्ठिओ कंठे // 7 // जह अहिणा दट्ठाणं, गारुडमंतो विसं पणासेइ / तह नवकारो मंतो, पावविसं नासइ असेसं किं एस महारयणं ? किं वा चिंतामणि व्व नवकारो ? / किं कप्पद्रुमसरिसो ? न हु न हु ताणं पि अहिययरो // 9 // चिंतामणि-रयणाई, कप्पतरू एगजम्मसुहहेऊ / नवकारो पुण पवरो, सग्गऽपवग्गाण दायारो // 10 // जं किंचि परमतत्तं, परमप्पयकारणं च जं किंचि / . तत्थ इमो नवकारो झाइज्जइ परमजोगीहिं // 11 // // 8 // 1

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