Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 01
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 292
________________ खमयादभिग्गहो इह सम्मं पूया य वीयरागाणं / दाणं च जहासत्ति जइदीणाईण विण्णेयं // 927 // एवं चिय निरुजसिंहो णवरं सो होइ किण्हपक्खम्मि / तह य .गिलाणतिगिच्छाभिग्गहसारो मुणेयव्वो // 928 // बत्तीसं आयाम एगंतरपारणेण सुविसुद्धो / तह परमभूसणो खलु भूसणदाणप्पहाणो य // 929 // एवं आयइजणगो विण्णेओ णवरमेस सव्वत्थ / अणिगूहियबलविरियस्स होइ सुद्धो विसेसेणं // 930 // चित्ते एगंतरओ सव्वरसं पारणं च विहिपुव्वं / सोहग्गकप्परुक्खो एस तवो होइ णायव्वो // 931 // दाणं च जहासत्तिं एत्थ समत्तीएँ कप्परुक्खस्स . / ठवणा य विविहफलहरसण्णामियचित्तडालस्स // 932 // एए अवऊसणगा इट्ठफलसाहगा व सट्ठाणे / . अण्णत्थजुया य तहा विण्णेया बुद्धिमंतेहिं . // 933 // इंदियविजओ वि तहा कसायमहणी य जोगसुद्धीए / एमादओ वि णेया तहा तहा पंडियजणाओ // 934 // चित्तं चित्तपयजुयं जिणिदवयणं असेससत्तहियं / / परिसुद्धमेत्थ किं तं जं जीवाणं हियं णत्थि ? // 935 // सव्वगुणपसाहण मो णेओ तिहिं अट्ठमेहिं परिसुद्धो। दंसणनाणचरित्ताण एस रेसिम्मि सुपसत्थो .. // 936 // एएसु वट्टमाणो भावपवित्तीएँ बीयभावाओ / सुद्धासयजोगेणं अणियाणो भवविरागाओ // 937 // विसयसरूंवणुबंधेहि तह य सुद्धं जओ अणुट्ठाणं / णिव्वाणंगं भणियं अण्णेहि वि जोगमग्गम्मि // 938 // 283.

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