Book Title: Sharirik Mimansa Bhashye Part 02
Author(s): A V Narsimhacharya
Publisher: A V Narsimhacharya

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्राणि. अ.सं. पा-सं. सू-सं. | शा-भा. वे-सा. वे-दी. पु-सं. पु.सं. पु-सं. بر م » ه م ४८१ ४२७ » ४८३४८४ ४२८ ३४३ | ३४३ १८४ १८४ ३४० ३ سم م ع ه २३९ २४२ س ع س ه २६ २६५ २४२४ ४९२ ४९४ ع २२ ९ » भावे चोपलब्धेः भावे जाग्रद्वत् भूतेषु तच्छृतेः भूम्नः क्रतुवज्ज्यायस्त्वं तथा भेदश्रुतेर्वैलक्षण्याच भेदादिति चेन्न प्रत्येकमदभेदान्नेति चेदेकस्यामपि भोक्रापत्तेरविभागश्चेत्स्याभोगमात्रसाम्यलिङ्गाच्च भोगेन वितरे क्षपयित्वाथ म. मन्त्रवर्णात् मन्त्रादिवद्वाविरोधः महद्दीर्धवद्वा ह्रस्वपरिममांसादिभौमं यथाशब्दमायामात्रं तु कान्येनामुक्तः प्रतिज्ञानात् मुग्धेऽधसंपत्तिः परिशेषात् मौनवदितरेषामप्युपदेशात् مہ. » مه ४२१ ४२१ » ع ३४० ३४० ع سه سه ر ه ع ع س १८७ २२० ४६८ ع » । ८८ १८९ | १९१ २२२ | २२३ ४७० | ४७१ २२८ ३९५३९६ و سه २२८ ع » ع مه ४११४१२ ه ع س مه १५४ ४८ ४१९ ا لنمممم ४९ ع » مه यत्रैकाग्रता तत्राविशेषात् यथा च तक्षोभयधा यथा च प्राणादिः यदेव विद्ययेतिहि यावदधिकारमवस्थितिरा यावदात्मभावित्वाच्च यावद्विकारं तु विभागो लोयोगिनः प्रतिस्मयते स्मायोनश्शरीरम् سه لم ل س س ४१९ । ४२० ३०१ ३०३ १४७ १४४ १२५ س १२७ ४४४ » سه ع مم ع بم रचनानुपपत्तेश्चनानुमान रश्म्यनुसारी रूपादिमत्त्वाच्च विपर्ययो द. रेतस्सिग्योगोऽथ ४ २ ३। २ १७ | ४४० २ १४ । ८६ । ८ १ । २६ | २१६ । २१७ For Private And Personal Use Only

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