Book Title: Shah Rajsi Ras ka Aetihasik Sar
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 4
________________ मंडपकी रचना की गई। खांड भरी हई थाली और मूद्राके साथ राजसी साहने समस्त जैनोंको लाहण बांटी। चौरासीन्यात सभी महाजनोंको निमंत्रित कर जिमाया। नानाप्रकारके मिष्टान्न-पक्वान्नादिसे भक्ति की गई। भोजनानंतर श्रीफल दिये गये। रमणीय और ऊंचे प्रतिष्ठामंडप में केसरके छींटे दिये गये / जलयात्रा महोत्सवादि प्रचुर द्रव्यव्यय किया। सारे नगरकी दुकाने व राजमार्ग सजाया गया। धूपसे बचने के लिए डेरातम्बू ताने गये, विविध चित्रादि सुशोभित नवानगर देवविमान जैसा लगता था / रामसी, नेता, धारा, मूलजी, सोमा, कर्मसी, वर्तमानसुत वजपाल, पदमसीसुत श्रीपाल प्रादि चतुर्विधसंघके साथ संघपति राजसी सिरमौर थे / जलयात्रा उत्सवमें नाना प्रकारके वाजिब हाथी, घोड़े पालखी इत्यादिके साथ गजारूढ इंद्रपदधारी श्रावक व इंद्राणी बनी हुई सुश्राविकाएँ मस्तक पर पूर्णकुम्भ, श्रीफल और पुष्पमाला रख कर चल रही थीं। कहीं सन्नारियाँ गीत गा रही थीं तो कहीं भाटलोग बिरूदावली वखानते थे। वस्त्रदान प्रादि प्रचुरतासे किया जा रहा था / जलयात्रादिके अनन्तर श्री कल्याणसागरसूरिजीने जिनबिंबोंकी अंजनशलाका प्रतिष्ठा की। शिखरबद्ध प्रासादमें संभवनाथप्रभुकी स्थापना की। सन्निकट ही उपाश्रय बनाया / ईश्वर देहरा, राजकोट-ठाकुरद्वारा, पानीपरब और विश्रामस्थान किये गये / सं. 1681 में राजसी साहने मूलनायक चैत्यके पास चौमुखविहार बनवाया / रूपसी वास्तुविद्याविशारद थे / इस शिखरबद्ध विशाल प्रासादके तोरण, गवाक्ष, चौरे इत्यादिकी कोरणी अत्यन्त सूक्ष्म और प्रेक्षणीय थी / नाटयपुत्तलिकाएँ कलामें उर्वशीको भी मात कर देती थीं। जगतीमें ग्रामलसार-पंक्ति, पगथिये, द्वार, दिक्पाल, घुम्मट आदिसे चौमंगला प्रासाद सुशोभित था। चारों दिशा में चार प्रासाद कैलासशिखर जैसे लगते थे। यथास्थान बिम्बस्थापनादि महोत्सव संपन्न हुआ।। __ सं. 1682 में राजसी साहने श्री गौडी पार्श्वनाथजोके यात्राके हेतु संघ निकाला / नेता, धारा, मूलराज, सोमा, कर्मसी, रामसी, आदि भ्राता भी साथ थे। रथ, गाड़ी, घोड़े ऊंट आदि पर आरोहण कर प्रमुदित चित्तमें श्रीगौड़ी पार्श्वनाथजीकी यात्रा कर सकुशल संघ नवानगर पहुंचा। सं. 1687 में महादुष्काल पड़ा। वृष्टिका सर्वथा अभाव होनेसे पृथ्वीने एक कण भी अनाज नहीं दिया / लूट-खसोट, भुखमरी, हत्याएं, विश्वासघात, परिवारत्याग आदि अनैतिकता और पापका साम्राज्य चहुं ओर छा गया। ऐसे विकट समयमें तेजसीके नन्दन राजसीने दानवीर जगड साहकी तरह अन्नक्षेत्र खोलकर लोगोंको जीवनदान दिया। इस प्रकार दान देते हुए सं. 1688 का वर्ष लगा और घनघोर वर्षासे सर्वत्र सुकाल हो गया। राजसी साह नवानगरके शांतिजिनालयमें स्नात्रमहोत्सवादि पूजाएँ सविशेष करवाते / हीरा-रत्नजटित प्रांगी एवं सतरहभेदी पूजा आदि करते, याचकोंको दान देते हुए राजसी साह सुखपूर्वक कालनिर्गमन करने लगे। मेघमुनिने 1690 मिति पोष वदि 8 के दिन राजसी साहका यह रास निर्माण किया। श्री धर्ममूतिसूरिके पट्टधर प्राचार्यश्री कल्याणसागरसूरिके शिष्य वाचक ज्ञानशेखरने नवानगरमें चातुर्मास किया। श्रीशांतिनाथ भगवान ऋद्धि-वृद्धि सुखसंपत्ति मंगलमाला विस्तार करें। साह राजसीके सम्बन्ध में विशेष अन्वेषण करने पर अंचलगच्छकी मोटी पटावलीमें बहुतसी ऐतिहासिक बातें ज्ञात हई / लेखविस्तारभयसे यद्यपि उन्हें यहाँ नहीं दिया जा रहा है पर विशेषार्थियोंको उसके पृ. 248 से 324 तकमें भिन्न-भिन्न प्रसंगों पर जो वृत्तान्त प्रकाशित हैं उन्हें देख लेनेकी सूचना दे देना आवश्यक समझता हूँ। 00 मषमुनि શ્રી શ્રી આર્ય ક યાણાગૌતમસ્મૃતિગ્રંથો ઝE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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