Book Title: Sansari Jivo ki Anantta Author(s): Bansidhar Pandit Publisher: Z_Bansidhar_Pandit_Abhinandan_Granth_012047.pdf View full book textPage 1
________________ संसारी जीवोंकी अनन्तता 'जैन जगत के संपादक 'जैनधर्मका मर्म' शीर्षक लेखमाला प्रकाशित करते हए ता० १६ जुलाई सन् ३२ के 'जैन जगत्' में दूसरे अध्यायके 'मतभेद ओर उपसंप्रदाय' प्रकरणमें लिखते हैं कि 'वर भगवानके निर्वाणके २२० वर्ष बाद अश्वमित्रने यह वाद खड़ा किया कि एक दिन संसारमें एक भी जीव न रहेगा।' लेखमालाके लेखक महोदयने इस शंकाको जितना महत्व दिया है, विचारकी दृष्टिसे वह उतना महत्व अवश्य रखती है। मैं भी उसका समाधान विचारकी दृष्टिसे ही कर रहा हूँ और लेखकमहोदयसे भी यह आशा रखता हूँ कि वे इस समाधानपर विचारकी दृष्टि ही रक्खेंगे। अश्वमित्रकी शंका-'एक दिन संसारमें एक भी जीव न रहेगा।' इसका अभिप्राय लेखकमहोदयने यह निकाला है और जो मेरी समझसे भी ठीक जान पड़ता है कि छः महिना आठ समयमें ६०८ जीव सतत मोक्ष जाते रहते हैं, इसलिये यह शंका होती है कि इससे तो एक दिन संसार जीव-शून्य हो जायगा, क्योंकि जीवराशि बढ़ती तो है नहीं, इसलिये वह समाप्त हो जायगी। इस शंकाकी पुष्टि एवं समाधानका प्रकार बतलाते हुए लेखकमहोदयने जो कुछ विवेचन किया है उसमें निम्नलिखित बातोंका उत्तर होना भी आवश्यक हो जाता है। १. शास्त्रोंमें जीवराशिसे अनन्तानन्तगणी व्यवहारकालराशिके बतलानेका अभिप्राय क्या है ? २. शास्त्रोंमें भव्य और अभव्यकी केवलज्ञानके गुणानुवाद करने के लिये कल्पना की गयी है या तात्विक कथन है ? इनमेंसे भव्य और अभव्यके विषयमें स्वतन्त्र लेख द्वारा प्रकाश डालूगा, केवल पहिली बातकी उत्तर इस शंकाके उत्तरके साथ इसी लेखमें करूंगा। वैसे तो यह समाधान “छः महीना आठ समयमें ६०८ जीव मोक्ष जाते हैं।" इस सिद्धान्तको ध्यानमें रख करके किया जा रहा है। यदि यह नियम न भी माना जावे तो भी समाधानके मूलमें किसी प्रकारकी बाधा नहीं पहुँचती है। समाधान-जगत्में दो प्रकारके जीव हैं-भव्य और अभव्य । भव्य मोक्ष जा सकते हैं, अभव्य नहीं, इसलिये एक तो अभव्य जीव संसारमें रहेंगे हो। दूसरी बात यह है कि भव्य जीवोंका मोक्ष जाना सतत् जारी रहेगा तो भी उनकी समाप्ति कभी नहीं होगी। इसका कारण यह है कि काल भूत, वर्तमान और भविष्यरूप है । भूतकाल अनादि होकरके भी मुक्तजीवराशिके असंख्यात गुणे समयोंमें विभक्त है, कारण कि छः महिना आठ समयोंमें ६०८ जीव मोक्ष चले जाते है । छः महीना आठ समयोंके असंख्यात समय होते हैं। इनमेंसे यदि एक जीवके मोक्ष जानेके समयोंको औसत निकाली जाय तो यही सिद्ध होता है कि असंख्यात समयोंमें एक जीव मोक्ष चला जाता है । यह क्रम अनादिकालसे जारी है । इसलिये आजतक जितने जीव मोक्ष चले गये, उनसे असंख्यात गुणे कालके समय भी बीत गये, उनके इन्हीं बीते हुए समयोंको भूतकाल कहते है । वर्तमान काल एकसमय मात्र है। भविष्यत्कालके कितने समय होना चाहिये, इस बातका विचार किया जाता है। जबकि जैन सिद्धान्त यह बतलाता है कि जीवोंका मोक्ष जाना सतत् जारी रहेगा, फिर भी संसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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