Book Title: Samyaktva Stavan Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ सप्टेम्बर 2008 57 अंतरमुहर्त इहां कहें, उपशमसमकितयोग ललनां. शास्त्रमांहें वी(वि)स्तार घणा, दीजें तिहां उपयोग ललनां, धन धन.... 11 दुहावर्धमानं जिनेस्वरू, त्रिभुवनतिलकसमान, महेर करी मुझ आपजो, समकित शुद्ध निदान 1 अगणित अवगुण माहरा, तुं प्रभु तारणहार, ते माटें तुझने कहुं, भवजल पार उतार 2 ढाल-३, कोइलो परवत धुंधलो रे लो० ए देशी / वेदक-क्षायिक पामीइं रे लो, भव भमता एक वार रे जिणेसर, उपसम- आस्वादन लहें रे लो, उत्कृष्टुं पंच विचार रे जिणेसर, वीरजी वचन सोहामणां रे लो, मीठां अमीअ समांन रे जिणेसर, वीरजी...१ (ए आंकणी) वार असंख्य विमासजो रे लो, खयोपशम गुणवंत रे जिणेसर, बीजें गुणठाणे भलु रे लो, आस्वादन शुभवंत रे जिणेसर, . वीरजी.... 2 तुर्यादिक मन धारजो रे लो, अड-इग्यारसुं ठाण रे जिणेसर, चउ-चउ उवसम ख्याइगो रे लो, वेदक क्षयोपशम जांण रे जिणेसर, वीरजी... 3 चार श्रद्धांन त्रि लिंग च्छे रेलो, दविध विनय प्रकार रे जिणेसर, त्रिण शुद्धि आठ प्रभावक रे लो, पांचे दोष परिहार रे जिणेसर, वीरजी.... 4 छविहा जयणागारस्युं रे लो, लक्षण भूषण पांच रे जिणेसर, घट भावना सम भावीइं रे लो, छ ठांणे भवि राचि रे जिणेसर, वीरजी.... 5 ए सडसट्ठ सोहांमणां रे लो, धरजो निरमल अंग रे जिणेसर, सार विचार संखेपथी रे लो, भाख्यो समय प्रसंग रे जिणेसर, वीरजी.... 6 आज मनोरथ सवि फल्या रे लो, थुणिया वीर जिणंद रे जिणेसर, पुण्य महोदय सेवतां रे लो, प्रगटें सहजानंद रे जिणेसर, वीरजी.... 7 // इति श्रीसम्यक्त्व स्तवनं संपूर्ण // संवत् 1899 वर्षे लख्युं छे / श्री मुमाईबिंदरे / श्री गोडीजी प्रासादात् / बेंहन राजाबाई पठनार्थः श्रीकल्याणमस्तु / श्रीसुरतबिंदरे श्रीवडेचउटें पांनां पोचें / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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