Book Title: Samrat Akbar aur Jain Dharm Author(s): Religion Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf View full book textPage 3
________________ सम्राट अकबर और जैन धर्म आचार्य हीरविजय सूरि को अकबर द्वारा प्रदत्त प्रथम फ़रमान में यह निर्देश है कि पर्युषण के १२ दिनों में उन क्षेत्रों में जहाँ जैन जाति निवास करती है, कोई भी जीव न मारा जाय। मिति ७ जमादुलसानी, हिज़री, सन् ९९२। ( देखें - नीना जैन, मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति, पृ० १६१-१६२ ) दूसरा फ़रमान भी हीरविजय सरि को दिया गया। इसमें सिद्धाचल ( शत्रुजय ), गिरिनार, तारंगा, केशरियाजी, आबू ( सभी गुजरात ), राजगिरि, सम्मेद शिखर आदि जैन तीर्थ-क्षेत्रों में पहाड़ों पर तथा मन्दिर के आस-पास कोई भी जीव न मारा जाय। इस उल्लेख के साथ यह भी कहा गया है कि यद्यपि पशुहिंसा का निषेध इस्लाम के विरुद्ध लगता है फिर भी परमेश्वर को पहचानने वाले मनुष्यों का कायदा है कि किसी के धर्म में दखल न दें। ये अर्ज मेरी नज़र में दुरुस्त मालूम पड़ी। तारीख ७ माह उरदी बेहेस्त मुताबिक रविउल अवल वही, सन् ३७ जुलुसी। यह इलाही संवत् ३५ मुताबिक २८वीं मुहर्रम, सन् ९९९ हिज़री का है। ( देखें - वही, पृ० १६३-१६४ ) हीरविजय को दिये गए तीसरे फ़रमान में विशेष रूप से धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव की बात कही गयी है। ( वही, पृ० १६५-१६६ ) __ चौथा फ़रमान अकबर द्वारा विजयसेन सूरि को प्रदान किया गया था। ये हीरविजय के शिष्य थे। इस फ़रमान में यह लिखा है कि हर महीने में कुछ दिन गाय, बैल, मैंस आदि को नहीं खाना और उसे उचित एवं फर्ज मानना तथा पक्षियों को न मारना तथा उन्हें पिजड़े में कैद न करना। जैन मंदिरों एवं उपाश्रयों पर कोई कब्जा न करे तथा जीर्ण मन्दिरों को बनवाने पर उन्हें कोई भी व्यक्ति न रोके। इस तरह यह भी निर्देश है कि वर्षा आदि होना या न होना ईश्वर के अधीन है, इसका दोष जैन साधुओं पर देना मूर्खता है। जैनों को अपने धर्म के अनुसार अपनी धार्मिक क्रियायें करने देना चाहिए। तारीख, शहर्युर, महीना इलाही, सन् ४६ मुताबिक तारीख २५ महीना सफन, हिजरी सन् १०१०। ( वही, पृ० १६७-१६८ ) अकबर का पाँचवाँ फ़रमान जिनचन्द्र सरि को दिया गया है। आचार्य जिनचन्द्र सूरि ने 'पर्युषण के बारह दिनों में हिंसा न हो', ऐसा आदेश प्राप्त किया था। उसमें पूर्व बारह दिनों के अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल की नवमीं से पूर्णमासी तक भी किसी जीव की हिंसा नहीं की जाय, ऐसा निर्देश है – तारीख ३१ खुरदाद इलाही, सन् ४९ (वही, पृ० १७१ ) अकबर द्वारा जैन साधुओं का सम्मान करने तथा उन्हें फ़रमान देने की जो परम्परा प्रारम्भ हुई थी उसकी विशेषता यह थी कि उसकी अगली पीढ़ी में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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