Book Title: Sampraday aur Congress
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ धर्म और समाज समझमें आवे, वह इसका पालन करे, जिसकी समझमें न आवे, वह प्राचीन परिपाटीका अनुसरण करे। नई पीढ़ीके लिए स्पष्ट शब्दों में इस तरहके निश्चित सिद्धान्त और कार्यक्रमके होनेकी अनिवार्य जरूरत है । ७४ मुझे स्पष्ट दिखाई देता है, और मैं यह मानता हूँ कि राष्ट्रीय महासभा के ध्येय, विचारसरणि और कार्य- प्रदेशमें अहिंसा तथा अनेकान्तदृष्टि, जो जैन तत्त्वके प्राण हैं, अधिक ताविक रीतिसे और अधिक उपयोगी तरीकेसे कार्य रूपमें आ रहे हैं । यद्यपि कांग्रेस के पंडालके आसनोंपर पीले या सफेद वस्त्रधारी या नम्रमूर्ति जैन साधु बैठे नहीं दिखाई देते; वहाँ उनके मुँहसे निकलती हुई अहिंसाकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म व्याख्या किन्तु अहिंसाकी रक्षाके लिए प्रशस्त हिंसा करनेके उपदेशकी वाग्धारा नहीं सुनाई देती; यह भी सत्य है कि वहाँ भगवान की मूर्तियाँ, उनकी पूजाके लिए फूलोंके ढेर, सुगंध-द्रव्य, और आरती के समयकी घंटाध्वनि नहीं होती; वहाँके व्याख्यानों में 'तहत्ति तहन्ति' कहने वाले भक्त और ' गहूली' गानेवाली बहनें भी नहीं मिलतीं; कांग्रेसकी रसोई में उपधान तप वगैरहके आगे पीछेकी तैयारीके विविध मिष्टान भी नजर नहीं आते; फिर भी जिनमें विचार-दृष्टि है, उनको स्पष्ट समझ में आ जाता है ' कि कांग्रेसकी प्रत्येक विचारणा और प्रत्येक कार्यक्रमके पीछे व्यावहारिक. अहिंसा और व्यावहारिक अनेकान्त दृष्टि काम कर रही है । खादी उत्पन्न करनी करानी और उसीका व्यवहार करना, यह कांग्रेसके कार्यक्रम में है । क्या कोई जैन साधु बता सकता है कि इसकी अपेक्षा अहिंसाका तत्त्व किसी दूसरी रीति से कपड़ा तैयार करने में है ? सिर्फ छोटी छोटी जातियों को ही नहीं, छोटे छोटे सम्प्रदायों को ही नहीं, परन्तु परस्पर एक दूसरेसे एकदम विरोधी भावनावाली बड़ी बड़ी जातियों और बड़े बड़े पंथोंको भी उनके एकान्तिक दृष्टिबिन्दुसे खींच कर सर्व-हित- समन्वयरूप अनेकान्त दृष्टिः संगठित करनेका कार्य क्या कांग्रेस के सिवाय दूसरी कोई संस्था या कोई जैन 'पोपाल' करती है या कर सकती है ? और जब यह बात है तो धार्मिक कहे जानेवाले जैन साप्रदायिक गृहस्थों और जैन साधुओं की दृष्टिसे भी उनके खुदके: ही अहिंसा और अनेकान्त दृष्टिके सिद्धान्तको आंशिक रूपमें भी सजीव कर बताने के लिए नई पीढ़ीको कांग्रेसका मार्ग ही स्वीकार करना चाहिए, यही फलित होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14